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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [५१५ ] दोनों ही के स्थान पर वैसे ही 'महु' और 'मज्म' ऐसे समान रूप से ही इन दोनों पद रूपों की सदा हो आदेश प्राप्ति जानना चाहिये । जैसे:-मम अथवा मे = मह अथवा मज्झु = मेरा, मेरी, मेरे । पृत्ति में आया हुश्रा १चमी अर्थक उदाहरण या है:-मत् भषनु गतः महु होन्तड गढ़ो अथवा मज्डा होन्तउ गवो = मेरे से (अथवा मेरे पास से ) गया हुआ होघे ॥ षष्ठी-अर्थक उदाहरण गाथाओं में दिया गया है। जिनका अनुवाद क्रम से यों है:संस्कृत:-मम कान्तस्य द्वौ दोषौ, सखि ! मा पिधेहि अलीकम् ॥ ददतः गरं काई उर्वरिता, त्यागल्य करपालः ॥ हिन्दो:-हे सखि ! मेरे प्रियतम पति में केवल दो ही दोष है। इन्हें तू म्यर्थ हो मत छिपा । जब वे दान देना प्रारम्भ करते हैं, तब केवल मैं ही बच रह जाती हूँ अर्थात मेरे सिवाय सब कुछ दान में दे देते हैं और जब वे युद्ध क्षेत्र में युद्ध करते हैं तब केवल सलधार हो बची रह जाती है और सभी शत्रु नाम-शेष रह जाते हैं । इस गाथा में 'मम = मेरे अर्थ में 'महु' आदेश प्राप्त पद-रूप का प्रयोग किया गया संस्कृतः—यदि भग्नाः परकीयाः, तत् सखि ! मम प्रियेण ।। श्रथ भग्नाः अस्मदीयाः, तत् तेन मारितेन ॥ २ ॥ हिन्दी:-हे सखि ! यदि शत्रु-गण मृत्यु को प्राप्त हो गये हैं अथवा ( रण-क्षेत्र को छोड़कर के ) भाग गये हैं; तो ( यह सब विजय ) मेरे प्रियतम के कारण से (ही है ) अथवा यदि अपने पक्ष के वीर पुरुष रण-क्षेत्र को छोड़ कर भाग खड़े हुए है तो ( समझो कि ) मेरे प्रियतम के वीर गति प्राप्त करने फ कारण से ( ही वे निराश होकर रख-क्षेत्र को छोड़ पाये हैं)॥२॥ इस गाथा में 'मम= मेरे' अर्थ में 'म' ऐसे आदेश प्राप्त पद-रूप का प्रयोग अपर्शित किया गया है॥ ४-३७६ ॥ अम्हह भ्यसाम्-भ्याम् ॥ ४-३८०॥ अपनशे अस्मदो न्यसा आमा च सह श्रम्हह इत्यादेशो भवति ।। अम्हह होन्तत भागदो ॥ प्रामा । अह मम्मा अम्हह तथा । (४-३७६) ।। अर्थ:-अपभ्रश भाषा में 'मैं-हम' वाचक सर्वनाम शब्द 'अस्मद्' के साथ में पंचमी विभक्ति के बहुवचन बोधक प्रत्यय 'भ्यस' का सम्बन्ध होने पर मूल शब्द 'अस्मद्' और प्रत्यय 'भ्यस्' दोनों ही के स्थान पर 'बन्द' ऐसे १३-रूप को नित्यमेव मादेश प्राप्ति होती है। जैसे:-अस्मत्-प्रम्हहंइमारे से अथवा इमसे ॥ इसी प्रकार से इसी सर्वनाम शब्द 'मस्मद्' के साथ में चतुर्थी बहुवचन बोधक
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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