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________________ [ ५०४ ] * प्राकृत व्याकरण * रखा जाता है तो यह सड़ जाता है और यदि इसको जला दिया जाता है तो केवल राख ही प्राप्त होती ६ ॥ ४- ३६५ ।। सर्वस्य साहो का || ४-३६६ ॥ अपभ्रंशे सर्व - शब्दस्य साह इत्यादेशो वा भवति ॥ साहू वि लोड़ तडप्फडड़ वह्नत्तणही तणेण ॥ चप्पर परिपावित्र्य हथि मोक लडेग ॥ १ ॥ पक्षे | सव्यु वि ॥ "I T अर्थ:- अपभ्रंश भाषा में 'सर्व' सर्वनाम के स्थान पर 'मन्त्र' अङ्गरूप की प्राप्ति होती है और विकल्प से 'सर्व' के स्थान पर 'साह' श्रङ्गरूप की प्राप्ति भी देखी जाती है । जैसे:- सर्वः ==सम्बु और साहु सच | यो अन्य विभक्तियों में भो 'शाहू' के रूप समझ लेना चाहिये | गाथा का अनुवाद यों है: संस्कृतः --- पुर्वोऽपि लोकःप्रस्पन्दते ( तडफडइ) महत्त्वस्य कृते || पुनः प्राप्यते हस्तेन मु ंन ॥ १ ॥ --- मह हिन्दी:- ( विश्व में रहे हुए मभो मनुष्य बड़प्पन प्राप्त करने के लिये तड़फड़ाते रहते हैव्याकुलता मय भावनाएँ रखते हैं। परन्तु बड़ तभी प्राप्त किया जा सकता है; जबकि मुक्त-हस्त होकर दान दिया जाता है । अर्थात त्याग से ही दान से ही बड़प्पन की भारित की जा सकती है ।। ४-३६६ ।। किम: काई - कारण वा ॥ ४-३६७ ॥ अपभ्रंशे किमः स्थाने काई कवण इत्यादेशो वा भवतः ॥ जह न सु वह दूइ घरू काई अहो मुहुं तुज्झु " यजु खंडड़ तर सहिए सो पिउ होइ न मज्भु ॥ १ ॥ काइ न दूरे देवख ॥ (३४६ - १) । पक्षे । फोडेन्ति जे हितं अाउं ताई पराई कब घण || रक्खेज्जद्दु लोहो अपण बालहे जाया विसमं थय ॥२॥ - सुपुरिस कंतुहे अरहरहिं भण" कज्जें कवणे ॥ जिव जिव बहुत्त लहईि तिवँ तिव नवद्दि सिरेण ॥ ३ ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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