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________________ *प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [ ४६३ ] +++++++++++++o++++++++++++++4e9496949%e2%94%++++++++++++++++++ संस्कृता-तुच्छ-मध्यायाः तुच्छ जल्पन-शीलायाः । तुच्छाच्छ रोमावल्याः तुच्छ रागायाः तुच्छतरहासायाः ॥ प्रियवचनमलभमानायो: तुच्छकायमन्मथनिवासायाः । अन्यद् यत्तच्छं तस्याः धन्यायाः तदाख्यातुन याति ॥ थावर्य स्तानान्तरं मुग्धायाः येन मनो वमंनि न माति ।। अर्थः-सूक्ष्म अर्थात पतली कमरयाली, अल्प शेलने के स्वमायवाली, पतले और सुन्दर केशोंवाली, अल्प कोपवाली हाथवा अल्प रागवाली, बहुत थोड़ा हँसनेवाली, प्रिय पति के वचनों को नहीं प्राप्त करने से दुबले शरीर वाली, जिसके पतले और सुन्दर शरीर में, कामदेव ने निवास कर रखा है ऐसी; इतनी विशेषताओं वाली उस धन्य अर्थात् अहो भाग्यवाली मुग्धा नायिका का जो दूसरा भाग सूक्ष्म है-अर्थात पतला हैं उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। अपनी चंचलता के कारण से परिभ्रमण करता हुआ जो सूक्ष्म प्राकृतिवाला मम विस्तृत मार्ग में भी नहीं समाता हैं। पार्य हैं कि येता वहो मन (क्त नायिका के) स्थूल स्तनों के मध्य में अवकाश नहीं होने पर भी यहाँ पर समा गया है। उपरोक्त अपपा पदों में पड़ी विभकि-बोधक प्रत्यय 'टुस ३ का सद्भाव स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया गया हैं ! अब पंचमी बोधक प्रत्यय 'हे' वाली गाथा का अनुवाद यों हैं: संस्कृता-स्फोटयतः यो हृदयं आत्मीयं, तयोः परकीया का घृणा ॥ रक्षतः लोकाः प्रात्मानं बालायाः जाती विषमी स्तनौ ॥३॥ हिन्दी:-जो (स्तन ) खुद के हृदय को हो विस्फोटित करके उत्पन्न हुए हैं। उनमें दूसरों के लिये दया कैसे हो सकती हैं ? इसलिये हे लोगों ! इस घाला से अपनी रक्षा करो; इसके ये दोनों स्तन अत्यन्त विषम प्रकृति के-(घातक स्वभाव के ) हो गये हैं॥३॥ इस गाथा में 'बालहे' पद पंचमी विभक्ति के एकवचन के रूप में कहा गया हैं ॥ ४-३५० ॥ भ्यसामो हु॥४-३५१ ॥ अपभ्रशे स्त्रियां वर्तमानामाम्नः परस्य भ्यस पामश्च हु इत्यादेशो भवति ।। भला हुआ जु मारिश्रा बहिणि महारा कन्तु ।। लज्जेज्जन्तु वयंसिमहु जब भग्गा घरू एन्तु ॥ १ ॥ वयस्याम्यो वयस्यानाम् वेत्यर्थः ।।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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