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________________ ४० ] 94406 * प्राकृत व्याकरण * *****99** 1444444 रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १-१७२ में की गई है। पेम् रूप की सिद्धि सूत्र संख्या २-९८ में की गई है। दा रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३ १९ में की गई है। महुं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ३ १९ में की गई है। संस्कृत प्रथमान्त एक वचनान्त रूप है। इसका प्राकृत रूप दहि होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१८७ से 'धू' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ४-४४८ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में संस्कृती य रूप वत् प्राप्त प्रत्यय 'सि' का लोप होकर दहि रूप सिद्ध हो जाता है । मधु संस्कृत प्रथमान्त एक वचनान्त रूप है। इसका प्राकृत रूप महु होता है। इसकी साधनिका उपरोक्त 'दहि' के समान ही होकर मह रूप सिद्ध हो जाता है । वृधि संस्कृत प्रथमान्त एक वचनान्त रूप है । इसका 'आ' प्राकृत रूप दहि होता हैं। इसमें सूत्र- संख्या १-१५७ से 'घ्' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-२५ को वृत्ति से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में घर्ष - प्राकृत में 'अनुनासिक' की प्राप्ति होकर 'दहि' रूप सिद्ध हो जाता है। मधु संस्कृत प्रथमान्त एक वचनान्त रूप है। इसका 'आई' प्राकृत रूप महुं होता है। इसकी सानिका रोक 'दहि' के समान ही होकर महुँ कप सिद्ध हो जाता है । बालः संस्कृत प्रथमान्त एक वचनान्त रूप है । इसका प्राकृत रूप बाली होता है । इसमें सूत्रसंख्या ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृतीय प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर बालो रूप सिद्ध हो जाता है। बाला संस्कृत प्रथमान्त एक वचनान्त रूप है । इसका प्राकृत रूप भा बाला ही होता है। इसमें सूत्र संख्या ४-४४८ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में स्त्रीलिंग में संस्कृतीय प्रत्यय सि=स्' की प्राप्ति और १-११ से प्राप्त हलन्त व्यञ्जन 'स्' का लोप होकर प्रथमान्त एक वचन रूप स्त्रीलिंग पद वाला सिद्ध हो जाता है ।। ३- २५ ॥ ३२६ ॥ जस्-शस्-इ-इं णयः सप्राग्दीर्घाः ॥ क्लीने वर्तमानानाम्नः परयोर्जस् - शसोः स्थाने सानुनासिक - सानुस्वाराविकारों विदेशा भवन्ति सप्राग्दीर्घाः । एषु सत्सु पूर्व स्वरस्य दीर्घत्वं विधीयते इत्यर्थः ॥ हूँ । जाइँ या अम्हे || ई | उम्मीलन्ति पङ्कयाई चिट्ठन्ति पेच्छया । दहीहं हुन्ति जेम था। महूई मुवा ॥ णि । फुन्तन्ति पयाणि गेयह वा । हुन्ति दहीणि जेम वा । एवं महूणि ।। क्लीक इत्येव । बच्छा । बच्छे | जस्-शस् इति किम् | सुई || t.
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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