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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [४७७ ] 1000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000... संस्कृतः-विट ! मया त्वं पारितः, मा फुरू दीर्घ मानम् ।। निक्रया गमिष्यति रात्रिः, शीघ्रं भवति पिभातम् ॥१॥ अर्थ:-हे मायक ! (तू मूर्ख है ), मैंने तुझे रोक दिया था कि लंबे समय तक अभिमान मत कर; ( नायिका से शीघ्र प्रसन्न हो जा) (क्यों कि ) निद्रा ही निद्रा में रात्रि व्यतीत हो जायगी और शीन हो सूर्योदय हो जायगा । ( पीछे तुझे पछताना पड़ेगा)॥२॥ (३) तीसरी गाथा में समझाया गया है कि श्री लिंग शब्दों में भी विभक्ति-वाचक प्रत्ययों के पहिले अन्त्य स्वरों में परिवर्तन हो जाता है । जैसाकि-'मणिय. दिदि, भल्लि और पइट्ठि' में देखा जा सकता है । इसका संस्कृत-पूर्वक हिन्दी अनुवाद इस प्रकार से हैं:संस्कृतःएनि ! मया भणिताका कुरू वा नाटिए । पुत्रि ! सफा भलिल यथा, मारयति हृदये प्रविष्टा ॥३॥ हिन्दी:-हे बेटी ! मैं ने तुझ से कहा था कि-'तू टेढ़ी नजर से { कटाक्ष पूर्वक दृष्टि से ) मत देख । क्योंकि हे पुत्री ! तेरी यह वक्र दृष्टि हृदय में प्रविष्ट होकर इस प्रकार आघात करती है जिस प्रकार कि तेज धार वाला और तेज नोक वाला भाला हृदय में प्रवेश करके श्राघात करता है। (४) चौथी गाथा में कहा गया है कि प्रथमा के यहुवचन में भी पुल्लिंग में दीघ स्वर के स्थान पर हस्व स्वर की प्राप्ति हो जाती है । जैसा कि 'स्वम्गा' के स्थान पर 'स्वग्ग' ही लिख दिया गया हो । गाथा का संस्कृत अनुवाद निम्न प्रकार से है:संस्कृतः-एते ते अश्वाः, एषा स्थली, एते ते निशिताः खगाः । अत्र मनुष्यत्व ज्ञायते, या नापि वल्गा बालयति ।। अर्थ:-ये दे ही घोड़े हैं. यह वही रणभूमि है और ये वे ही तेज धार वाली तलवारें हैं और यहां पर ही मनुष्यत्व विदित हो रहा है; क्योंकि ये (योद्धा) (यहां पर) मय खाकर अपने छोड़ों की लगामें नहीं फेरा करते हैं, अर्थात पीठ दिखाकर रस भूमि से भाग जाना ये स्पष्ट रूप से कायरता समझते हैं । अतएव वास्तव में ये ही वीर हैं। वृत्ति में प्रन्धकार कहते है कि यों अन्य उदाहरणों की कल्पमाऐं अन्य विभक्तियों में पाठक स्वयमेव कर लें ॥ ४-३१० ॥ स्यमोरस्योत् ॥ ४-३३१ ॥ अपभ्रंशे अकारस्य स्यमोः परयोः उकारो भवति ।। दह मुह भुवण-भयंकर तोसिअसंकर णिग्गउ रह-वरि चडिअउ । चउमुहु छमूह झाइ वि एकहि लाइ विणावइ दइवें घडिअउ ॥१॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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