SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 483
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * प्रियोदय हिन्दी च्याख्या सहित * [ ४७३ ] 00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 नादि-युज्योरन्येषाम् ॥ ४-३२७ ।। चूलिका-पैशाचिके पि अन्येषामाचार्याणां मतेन तृतीय तुर्यथोरादौ वर्तमानयो युजि धातौ च श्राध-द्वितीयौ न भवतः ॥ गतिः । गती ॥ धर्मः धम्मो ॥ जीमूतः जीमूतो ।। झझरः । मच्छरो ॥ डमरूकः डमरूको ।। ढक्का । ढक्का ।। दामोदरः । दामोतरी ॥ बालकः । चालको ॥ भगवती । भकवती ॥ नियोजितम् । नियोजितं ।। ___ अर्थ:-अनेक प्राकृत-गाकररग के बनाने नाले आचार्यों का मन है कि चूल हा-पैशाचिक-मापा मे कवर्ग से प्रारम्भ करकं पवगे तक के तृतीय अक्षर अथवा चतुर्थ अक्षर यदि शरद के आदि में रहे हुए हो तो इनके स्थान पर सूत्र-संख्या ४-३२५ से क्रम से प्रामध्य प्रथम अक्षर के तथा द्वितीय द्यर की प्राप्ति नहीं होता है । अर्थात सृतीय पक्षर के स्थान पर तत्तीय ही रहेगा और चतुर्थ अक्षर के स्थान पर चतुर्थ अहार ही रहेगा । इसी प्रकार से जोड़ना-मिलाना' अर्थक धातु 'छु ।' में रहे हुए 'जकार' वर्षों के स्थान पर भो 'चकार' वर्ण की प्राप्ति नहीं होगी । यो इन श्राचार्यों का मत है शिन में अनादि रूप से और असंयुक्त रूप से' रहे हुए वावि ततोय तथा चतुर्थ अक्षरों का स्थान पर कम से अपने हो वर्ग के प्रथम तथा द्वितीय साक्षर की प्रालि होती है । उदाहरण क्रम से इस प्रकार है:--1) गतिः =गती-चाल । (२) 'च' का: वर्भ:- घम्मो - धूप। ।३) 'ज' का:-जीमूतः - जीमूतो= मेघ-बाल। (४) 'झ' काः - अधरः = मच्छरो-माझ बाजा विशेष । (५) 'ड' का'-डमरूकः = डगरूको शिवजो का बाजा विशेष । ६) 'ढ' का-ढक्का-ढक्का - बाजा विरंपा (8) 'द' का:--- दामोदरः =दामोतरो- श्रीकृष्ण वासुदेव । (८) च' का:-बालकः = बालको = नया । (६) 'भ' का:भगवती भवती देवी, श्रीमती । और (१०) 'युज्' धातु काः-नियोजिप्सम-नियोजितं = जोड़ा हुआ॥४-२७॥ शेष प्राग्वत् ॥४-३२८ ।। चूलिका-पैशाचिके तृतीय-तुर्थयोरित्यादि यदुक्तं ततोन्यच्छेष प्राक्तन पैशाचिक वत् भवति ॥ नकर । मकनो ॥ अनयोनों णत्वं न भवति । णस्य च नत्वं स्यात् ॥ एवमन्यदपि ॥ अर्थः-चूलिका-पैशाचिक-भाषा में ऊपर कहे हुए सूत्र संख्या ४-३२५ से ४ ३.७ तक के मूलों में चर्णित विधि-विधानों के अतिरिक्त शेष सभी विधि-विधान पैशाचिक भाषा के अनुसार ही जानना चाहिये । 'नकर' ( = नगर-शहर ) में रहे हुए 'नकार' के स्थान पर और 'भस्कनी'( मार्गणः = याचक-भिखारी) में रहे हुए 'नकार' के स्थान पर चूलिका पैशाचिक-भाषा में कार की प्राप्ति नहीं होती है। इस भाषा में 'णकार' के स्थान पर 'नकार' की प्राप्ति होती है। यों पैशाचिक पापा में शोर
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy