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________________ = [ ४६६ ] * प्राकृत व्याकरण * जिसके समान । जैसा । (२) तादृशः = तानिसके समान वैमा। (३) कीदृशः = केतिस्रो = किसके समान | कैमा । (४) इदृशः = एतिसी = इसके समान, ऐसा । (५) भवादृशः =भवातिसी = आप के समान आप जैसा। (६) अन्यादृशः = अनातिसन्य के समान दूसरे के जैना । (७) युष्मादृशः = युम्हार्तिसो = तुम्हारे समान तुम्हारे जैसा । (5) अस्मादृशः = अम्हातिसो = हमारे समान - हमारे जैम्मा । इत्यादि ।। ४-३१७ ।। इ चेवः ॥ ४-३१८ ॥ पैशाच्या मिचेचोः स्थाने तिरादेशो भवति । वसुनाति । मोति । नेति । तेति ॥ अर्थः- प्राकृत भाषा में वर्तमानकाल के अन्य पुरुष के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'इ' और 'ए' के स्थान पर पैशाची भाषा में 'ति' प्रत्यय का आदेश प्राप्ति होती है। जैसे:- वाति = वमुआइ = वसुआति वह सूखता है । भवड़ = भवति = भांति = वह होता है। इनयति नंति वह ले जाता है । दाइ ददाति = तेति = वह देता है ।। ४-३२८ ॥ आ -ते श्र ॥। ४-३१६ ॥ " पैंशाच्यामकारात् परयोः इ चे चोः स्थाने ते व कारात् तिश्वादेशो भवति ॥ लपते । लपति | अच्छते । अच्छति । गच्छते । गच्छति । रमते रमति ॥ आदिति किम् । होति । नेति ॥ अर्थ:- प्राकृत भाषा में वर्तमानकाल के अन्य पुरुष के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'इ' और '' के स्थान पर अकारान्त-धातुओं में पैशाची भाषा में 'ते' प्रत्यय को और 'ति' प्रत्यय की श्रादेश प्राप्ति होती है। दोनों प्रत्ययों में से किसी भी एक प्रत्यय की अकारान्त धातुओं में संयोजना की जा मकती है । अकारान्त के सिवाय अन्य स्वपन्त धातुओं में केवल 'ति' प्रत्यय की ही प्राप्ति होगी। लैमा कि सूत्रसंख्या ४-३१८ में समझाया गया है। उदाहरण यों है: - ( १ ) पति पते अथवा लपति = वह स्पष्ट रूप से बोलता है | ( ) आस्ते = अच्छइ -अच्छते अथवा अच्छति = वह बैठता है अथवा हाजिर होता है । (३) गच्छति गच्छइ = गच्छते अथवा गच्छति = वह जाता है। (४) रमते = रमइ - रमते अथवा रमति = वह खेलता है-वह क्रीड़ा करता है ।। प्रश्नः—' अकारान्त-धातुश्रीं' में हो ते' और 'ति' प्रत्ययों की प्राप्ति होती है; ऐसा क्यों लिखा गया हूँ ? उत्तरः —अकारान्त धातुओं के सिवाय अन्य स्वरान्त धातुओं में ते' प्रत्यय की प्राप्ति कदापि नहीं होती है; उनमें ता केवल 'ति' प्रत्यय की ही प्राप्ति होती है; इसलिये 'अकारान्त-वातुओं का नाम
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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