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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित $$$$$$$$00. वृत्ति में मागवी गाथा का संस्कृत अनुवाद प्रकार है. - रभस-वश नम्र सुर-शिरो विगलित मन्दार-राजित जैधियुगः ॥ वीर-जितः प्रक्षालयतु मम सकल मद्य जम्वालम् ॥ १ ॥ $46546000.0 [ ४४६ ] $64000000OODSE अर्थः- भांत के कारण मेरा पूर्वक झुकतं हुए देवताओं के मस्तकों से गिरते हुए मन्दार जाति के श्रेष्ठ फुर्ती से जिनके दोनों चरण शोभायमान हो रहे हैं, ऐसे भगवान महावीर जिनेश्वर मेरे सम्पूर्ण पापरूपी मैलको अथवा कीचड़ को प्रचालन कर दे श्रथवा दूर करदे । से बतला दिया गया है, जो के प्यान उपरोक्त वर्ण-परिवर्तन अथवा वर्ग आदेश का स्वरूप देने याग्य है ।। ४-२८५ ॥ स- पोः संयोगे सोऽग्रीष्मे ॥ मागध्यां सकार षकारयोः संयोगे वर्तमानयोः सी ऊलोपाद्यववादः ॥ स पक्खजदि हस्ती । बुदस्पदी | बालु | कटं । विस्तु । शस करलें | उस्मा । निस्फलं । गिम्हवाशले || ४-२८६ ॥ भवति, ग्रीष्मशब्दे तु न भवति । मस्कली । विस्मये ।। ष । शुरुकधनुस्खण्डं ॥ श्रग्रीष्म इति किम् । I अर्थः--- मागवी भाषा में संयुक्त रूप से रहे हुए हलन्त 'सकार' और हलन्त 'षकार' के स्थानपर हलन्त 'सकार' का प्राप्ति हो जाती हैं। परन्तु यद् नियमांम' शब्द में रहे हुए हलन्त 'पकार' के लिये लागू नहीं पड़ता है । यों यह प्राप्त इलन्त 'सकार' ऊपर कहे हुए 'लोप आदि विधियों की दृष्टि से अपबाद रूप ही समझा जाना चाहिये । जन्त्र 'कार' का उदाहरण इस प्रकार है: - (१) प्रस्खलति हस्तिः = यक्वलदि हस्ती = हाथी गिरता है। (२) बहस्पतिः = बुहस्पदी देवताओं का गुरु । (३) मस्करी = मस्कली= उपहास । (४) विस्मयः = विस्मये = आश्चर्यं । इन उदाहरणों में इलन्त 'सकार' की की स्थिति हलन्त रूप में ही रही हैं। अब इलन्त बिकार' के उदाहरण यो हैं: - (१) शुष्कतालुम = शुष्कवा-सूखा तालु । (२) कष्टम् कस्कोफ पोड़ा । (३) विष्णुम् = वस्तु =विष्णु का । (४) शब् कवलः = शस्य कवले घास का नाम । (५) उष्मा = उस्मा गरमी (६) निष्फलं निस्फल = फर रहित, ब्यर्थ । (७) धनुष खंडम् धनुखंड = धनुष का टुकड़ा। इन उदाहरणों में हलन्त 'पकार' की हलन्त 'सकार' की प्राप्ति हुई है । यो अन्यत्र भी जान लेना चाहिये । प्रश्नः - प्रोष्म' शब्द में रहे हुए जन्त 'पकार' की हजन्त 'सकार' की प्राप्ति क्यों नहीं हुई है ? देखा जाता है; इसलिये मन्थकर्ता को भी 'मोष्म' शब्द में रहें के प्रतिकूल विवान करना पड़ा है। इसका उदाहरण इस ऋतु का दिन यों 'प्रोम' का रूपान्तर 'गिन्ह' हो उत्तरः- चूंकि संस्कृत भाषा में उपलब्ध 'ग्राम' शब्द का रूपान्तर भागधी भाषा में गिन्ह' हो हुए हलन्त 'धकार' के लिये उपरोक्त नियम प्रकार है: - ग्राम वासरः = वाशले = जानना ॥ ४-२८६ ॥ 1
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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