SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 454
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [४४४ ] * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * .00000000rowser.orrottornemorroreterotonormeram.ornmore........om शौरसेन्या हीमाणहे इत्ययं निपातो विस्मये निर्वेदे च प्रयोक्तव्यः ॥ विस्मये । हीमाणहे जीवन्त-बच्छा में जमणी ।। निदे। हीमाण हे पलिस्सन्ता हगे एदेण निय-विधियां दुव्यवसिदण ॥ अर्थ:-'शाश्चर्य' प्रकट करना हो अथवा 'खेद प्रकट करना हो तो शौर सेनी भाषा में 'होमाणहे' से इस अव्यय का प्रयोग किया जाता है। श्राश्चर्य-प्रकट करने अथक उदाहरण थों है:अहो !! जीवन्त-वत्ता मम जनगी - हीमाणहे जीवन्त -बच्छा में जणणी = आश्चर्य है कि मेरी माता जीवन-पर्यत्न वात्सल्य भावना रखने वाली है । 'खेद' प्रश्द करने अथक उदाहरण इस प्रकार से है:-हा ! हा!! परिश्रान्ता अहम् एतेन निज-विधेः दुर्यपासिसम - हीमाणहे पलिस्सन्ता हगे एड्स निय-विधिको दुध्वसिदेण-अरे ! श्ररे !! खेद है कि-(बड़े दुःख की बात है कि-) मैं अपन इम भाग्य के विपरीत चले जाने से तिकवीर के फेर में बहुत ही दुःखी हूँ ।। यों हीमाणहे' अव्यय शौरसेनी भाषा में 'आश्चर्य तथा खेद दोनों अर्थ में प्रयुक्त किया जा सका हे || ४-१६ ॥ रणं नन्वर्थे ॥४-२८३ ।। शौरसेन्यां नन्वर्थे रणमिति निपातः प्रयोक्तव्यः ।। णं अफलोदया । अथ्य मिस्सेहिं पुमं य्येव आणत्रं । णं भवं मे अग्गा चलदि ।। आर्षे बाक्यालंकारपि दृश्यते । नमोत्थु णं । जया णं । तया णं ।। अर्थ:-संस्कृत-अव्यय "मनु" के स्थान पर शौरसनी-भाषा में "" अव्यय की आदेश प्राप्ति जानना चाहिये । इस "" अध्यय के चार अथं कम से इप्त मकार होते हैं:-(१) अवधारण अथवा निश्चय, (०) श्राशंका, (३) वितर्क और (४) प्रश्न । इन चारों अर्थों में से प्रसंगानुसार उचित अर्थ की कल्पना कर लेना चाहिये । जदाहरण इस प्रकार से हैं:---(१) ननु अफलोदया =णं अफलोदया (मुझे) शंका (है कि यह। फलादया वाला नहीं है । (२) ननु आर्य मित्रैः प्रथममेव आक्षप्तम् =णं अध्य मिस्सेहिं पुढभे रयेव आणत्त = निश्चय ही पूज्य पुरुषों द्वारा (यह बात) पहिले हो फरमादी गई है। (३) ननु भवान् मम (अथवा म) अग्रतः चलति = णं भव मे अग्गदी चलर्दि-निश्चय ही आप मे से आगे चलत हैं। "णं' अव्यय आप प्राकृत में "वाक्यालंकार" रूप में भी प्रयुक्त किया जाता हुआ देखा जाता है। ऐसी स्थिति में यह "' अव्यय अर्थ रहित ही होता है और केवल शोभा-रूप में हो इ की उपस्थिति रहता है। जैसे:-नमोऽस्तु-ममोत्शु णं = नमस्कार प्रणाम होवे । इसी उदाहरण में 'ण" अर्थ शून्य है और केवल शोभा रूप ही है । (२) यदा तदा - जयाणं, तयाणं = जब तब । यहाँ पर भी 'ण' अध्यय कंवल शोभा के लिये ही प्रयुक्त हुआ है। यों अन्यत्र भी इस 'एं" अव्यय की स्थिति को स्वयमेव समझ लेना चाहिये ॥ १-२८३ ।।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy