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________________ * प्राकृत व्याकरण * [ ४३७ ] mero+00000000000ro+0000000000+kordinatosotorboroork000000000000000000000 अर्थ:-शौरसेनी भाषा में संयुक्त म्यजन' के स्थान पर विकल्प से द्वित्व (अथवा द्विरुक्त) 'व्य' को प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में संयुक्त 'य' के स्थान पर सूत्र-संख्या २-२४ से तथा ~CE से द्विस्व 'अ' की प्राप्ति भी होती है । ११) हे आर्यपुत्र !-पर्याकुलोकतास्मिहे अग्य उत्त! (अथवा हे अजपत्त!) पय्याकुलीकदम्हि (अथवा पज्जाकु कदम्हि) = हे आर्य पुत्र! मैं दुःन्त्री करदी गई हूँ। (२) सूर्यः-सुग्यो अथवा सुज्जो = सूरज । (३) प्रायः = अथ्यो अथवा अज्जो = आर्य, श्रेष्ट । (४) पर्याकुलः = पय्याजलो भथवा पाउलो=बड़ाबमा हुश्रा, दुःखी किया हुआ । (५) कार्य-परवशः% कज्ज-परवा अश्वत्रा कय्य-परवसो = कार्य करने में दूसरों के वश में रहा हुआ । यो शौर सेनी भाषा में 'य' के स्थान पर व्य' अथवा 'ज' की प्राप्ति विकल्प से होतो है ।। ४-२६६ ।। थो धः ॥४-२६७ ॥ शोर सेन्यां थस्य धो वा भवति ॥ कटि, कहदि ।। णाधी पाही। कथं कई। राजपधी, राजाहो ॥ अपदादावित्येव । थाम । थे श्री ।। अर्थः-संस्कृत-भाषा ले शौरसेनी भाषा में रूपान्तर करने पर संस्कृत शमा में रहे स्कार' ध्यजन के स्थान पर विकल्प से 'धकार' व्यङ्गन को प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से पदान्तर में सूत्र-संख्या १-१८७ 6 कार के स्थान पर हकार' की भी प्राप्ति हो सकती हैं। जैसे:-(१) कथयति = कोदि अथवा कहेदिमवह कहता ई-वह कथन करता है। इस उदाहरण में ति' के स्थान पर 'दि' की प्राप्ति सूत्र-संख्या ५-२७३ से जानना । (२) नाथः = णाधो अथवा णाही-नाथ, स्वाम', इश्वर । (३) कथम् कथं अथवा कई = कैस, किम तरह से । (४) राज-पथः-राज-पधो अथवा राज-रही- मुख्य माग, धोरी मार्ग, मुख्य मड़ । इन उदाहरणों में 'थकार' के स्थान पर 'धकार' की अथवा 'हकार' का प्रारित प्रदर्शित की गई है। - - - सूत्र संख्या ४-२६० से यह अधिकृत-सिद्धान्त जानना चाहये कि नक्त 'थकार' के स्थान पर "धकार' की अयवा 'हकार' की प्राप्ति पद के आदि में रहे हाग. 'यकार' के स्थान पर नहीं होती है और इसी लिय इसी सूत्र की वृत्ति में श्रपदादी' अर्थात पद के आदि में नहीं ऐसा उल्लेख किया गया है। त्ति में इम विषयक दो नदाहरण भी कम में इस प्रकार दिये गये हैं:- (१) स्थाम = थाम - बल, वा य, पराक्रम । 'रथामन" शब्द नपुसक लिंगी है ,इसलिये प्रथमा विभक्ति के एक वचन में "स्थामन' का रू, "क्याम" बनता है। (२, स्थैयः = येओ - रहने योग्य अथवा जो रह सकता क्षे. अथवा फैमला करने वाला न्यायाधीश । इन जनाहरणों मे पदों के आदि में रहने वाले "कार" के स्थान पर रही 'धकार" को पति ही होती है और न "कार" की प्राप्ति हो । यो "कार" के स्थान पर 'धकार" की अथवा 'इकार" की प्राप्ति को जानना चाहिये ।।४-२६७॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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