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________________ * प्राकृत व्याकरण * [४३५ ] 1000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 अर्थ:-संस्कृत-भाषा के तावत' शब्द के आदि 'तकार' के स्थान पर शौरसेनी भाषा में विकल्प से 'दकार' की प्रादेश-प्राप्ति होती है । जैसे:-ताच दाप अथवा तार-तब तक ॥४-१६२ ।। आ श्रामध्ये सौ वेनो नः ॥४-२६३ ॥ शौरसेन्यामिनो नकारस्य आमन्त्र्ये सौ परे आकारो वा भवति ॥ भो कञ्चुइमा । सुहिश्रा । पर्छ । भो तवस्सि । भो भणस्ति ।। अर्थ–'इन्' अन्त वाले शब्दों के अन्त्य हलन्त 'नकार' के स्थान पर शौरसेनी भाषा में संबोधन-वाचक प्रत्यय 'सु' परे रहने पर 'आकार' को प्रातेश-प्रानि विकल्प से हो जाती है। जैसे:[१] हैं ककिन ! = भी कञ्चुढा अथवा भो कंचुइ-अरे अंतःपुर के चपरासी । [PJहे मुखिन् - भी सुहिआ अथवा भी मुहि!- हे सुख वाले । [3] हे तपविन = भो तपस्सिआ अथवा भो तपस्तिहे तपश्चर्या करने वाले । हे मनस्विन् = भी मणस्सिमा अथवा भो मणास्स! हे विचारवान् ।। यों 'नकार' के स्थान पर मंबोधन के एक वचन में विकल्प से श्राकार को श्रादेश-प्राप्ति हो जाती है। पक्षान्तर में 'पा' का लोप हो जायगा ।। ४-२६४ ।। मो वा ॥४-२६४॥ शौरसेन्यामामध्ये सौ परे नकारस्थ मो यो भवति ॥ भो रायं । भो विषय वम्भ । सुकम्म । भयवं कुसुमाउह । भय ! तित्थं पबचेह । पक्षे । सयल-लोश्र-अन्ते पारि भयव हुदवह ॥ अर्थः---संबोधन के एक वचन में 'सु' प्रत्यय परे रहने पर शौरसेनी भाषा में संस्कृतीय नकारान्स शब्दों के अन्त्य हलन्त 'नकार' का लोप हो जाता है; संबोधन वाचक-प्रत्यय का भी लोप हो जाता है और लोप होनेवाले नकार के स्थान पर विकल्प से हलन्त मकार की प्रारंभ हो जाती है। यों शौरसेनी भाषा में नकारान्त शरद के संबोधन के एक वचन में दो रूप हो जाते हैं। एक तो मकारान्त रूप वाला पद और दूसरा मकारान्त रूप रहित पद । जैसे:-हे राजन्! -भी रायं अथवा भी राय-ई राजा। हे विजय-वर्मन् != भी विअय वम्म! अथवा भो विभय पम्म! हे विजय-वर्मा । हे सुकर्मन् = भी सुकम्मा अथवा भो मुकम्म! = हे अच्छे कमों वाले। हे भगवान कुसभायुध-भो भयवं अथवा भो भयव) कुमुमाउह! हे भगवान कामदेव । हे भगवन। तीर्थ प्रतिस्प हे भयर्थ! (अथवा है भयष) सिस्थ पत्तेह-हे भगवान! (श्राप) तीर्थ की प्रवृत्ति करो । हे सफल-लोक-अंतश्चारिन्! भगवन् । इतषह! =भो सयल-लोअ-अन्ते आणि भयका हुइवह! हे सम्पूर्ण लोक में विचरण करने वाले भगवान अग्निदेव । इन उदाहरणों में यह मत मक्त किया गया है कि संबोधन के एक वचन में नकारान्त शब्दों में अन्त्य नकार के स्थान पर मकार की प्राप्ति ( तद्नुसार सूत्र-संख्या १-२३ से अनुस्वार को प्राप्ति) विकल्प से होती है ।। ४-२६४ ।। unname
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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