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________________ मारा व्याकरण 2 [१२५ ] momomemiummermometritiirerometeoretootweetm.in... __जानातः कर्म-भावे गुच्च रणज्ज इत्यादेशो वा भवतः । तत्संनियोगे क्यस्य च लुक् ।। रणव्यह, णज्जइ । पक्षे । जाणिज्जइ । मुगिज्जइ ।। प्रज्ञो णः ॥ (२-४२) इति मादेशे तु । गाइज्जइ । नपूर्वकस्य । अणाइज्जइ ।। अर्थः -'जानना' अर्थक संस्कृत-धातु 'ज्ञा' के प्राकृत रूपान्तर में कर्मणि भावे प्रयोग में ज्ञा' के स्थान पर 'णग्य और जा ऐ मे दो धातु-पो को विकल्प से प्रादेश प्राप्ति होती है । यो आदेश प्राप्ति होने पर कर्मणि-भावे अर्थ बोधक प्रत्यय ईटा अथवा इज' का लोप हो जाता है और केवल '७४व अथवा णजे' में काल-बोधक प्रत्यय जोड़ने मात्र से ही कर्मणि-भाव-बोधक-अर्थ की उत्पत्ति हो जाती है। दोनों के क्रम मे उदाहरण यों हैं:-बायत = वह अथवा एज्जइ - जाना जाता है । सूत्र संख्या ४-२४२ से प्रारम्भ करके सूत्र संख्या ४-२५७ तक कुछ एक धातुओं के कर्मणि-भावेअर्थ में नियमों का संविधान किया जा रहा है और इस सिलसिले में 'क्यस्य च लुक्त' ऐसे शब्दों का भी प्रयोग किया जा रहा है, तदनुसार 'झ्य-य' प्रत्ययं संस्कृत-भाषा में कर्मणि-भावे-अर्थ में धातुओं के मूल स्वरूप में हो जोड़ा जाता है और इसी 'क्य = य' प्रत्यय के स्थान पर प्राकृत-भाषा में सूत्र-संख्या ३-१६० से 'ईअ अथवा इज' प्रत्यय-को प्राकृत धातु में संयोजना करके कमणि-भाव-अर्थक प्रयोग का निर्माण किया जाता है, परन्तु कुछ एक धातुओं में इस 'य' प्रत्यय बोधक 'ईन अथवा इज्ज' प्रत्ययों का लोप हो जाने पर भी कममि-भावे अर्थ प्रकट हो जाता है; ऐसा 'क्य च तुक्' शब्दों से समझना चाहिये। ऊपर 'ज्ञा' धातु के 'एश्व और णज्ज' रूपों की श्रादेश-प्राप्ति वैकल्पिक बनलाई गई है। अतः पदान्तर में 'ज्ञा धातु के सूत्र संख्या ४-७ से 'जाण और मुग' प्राकृत धातु-रूप होने से इन के कर्मणि भावे-अर्थ में क्रियापदीय रूप यो होंगेः-ज्ञायते = जाणिज्जइ अथवा मुणिआइ = जाना जाता है। 'णय तथा णज्जइ' में 'इज्ज़' प्रत्यय का लोप है, जब कि 'जाणिज्जा और मुणिज्जइ' में 'इज्ज' प्रत्यय का सद्भाव है; इस अन्तर को ध्यान में रखना चाहिये। किन्तु इन चारों क्रियापों का अर्थ तो 'जाना जाता है ऐमा एक हो है। सूत्र संख्या २-४ से 'ज्ञा' के स्थान पर 'णा' रूप को भी श्रादेश प्राप्ति होती है और ऐप्ता होने पर 'ज्ञायते' का एक प्राकृत-रूपान्तर 'गाइजाइ' ऐसा भी होता है। 'गाइजई' का अर्थ भी 'जाना जाता है। ऐसा ही होगा। यदि 'नहीं' अथक प्रत्यय 'न अथवा अ' 'शा' धातु में जुड़ा हुआ होगा तो इसके क्रियापदाय रूप यों होंगे:-न ज्ञायते अज्ञायते अणायजाड़ = नहीं जाना जाता है। यो 'शा' धातु के प्राकृत-भाषा में कमणि-भाव-अर्थ में क्रियापदीय-स्वरूप जानना चाहिये ॥ ४-२५२ ।। व्याहगे हिप्पः ॥ ४-२५३ ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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