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________________ * प्राकृत व्याकरण * [ ४०७ ] रुधो न्ध-म्भौ च ॥ ४-२१८ ॥ रुधोन्त्यस्य न्ध भ इत्येतो चकारा जश्व भवति ॥ सन्धइ । सम्भ६ । रुज्झइ ।। अर्थ:-'रोकना' अर्थक संस्कृत धातु सध' के अन्त्य व्यञ्चन 'ध' के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'न्ध' की, अथवा 'म' की प्राप्ति हो जाती है । मूल-सूत्र में 'चकार दिया हुआ है, नवनुमार 'ध्' के स्थान पर 'उम' की प्राप्ति भी सूत्र संख्या ४-२१७ से हो जाती है। यों 'रुध' के प्राकृत में 'गन्ध, रुम्भ और रुझ' तीन हप पाथ जाते हैं। इनका उदाहर। इस प्रकार है:-रुणद्धि = [१] रुन्धइ. [२] रुम्भइ, P] सझा = वह रोकता है ।। ४-२१८ ।। सद-पतो ईः ।। ४-२१६ ॥ अनयोरन्त्यस्य डो भवति ।। सडइ । पडई ॥ अर्थ:-गल जाना अथवा सूख जाना, शक्तिहीन हो जाना' अर्थक संस्कृत-धातु 'सद' और "गिरना, भ्रष्ट होना' अर्थक संस्कृत-धातु 'पत' में स्थित अन्त्य व्यन्जन 'द् और न' के स्थान पर प्राकृतभाषा में 'ड' व्यकतान को प्राप्ति हो जाती है । जैसे: -सीदति = सडइ-वह गल जाता है, वह सूख जाता है अथवा वह शक्तीन हो जाता है । पतति-पडइ-वह गिरता है अथवा वह भ्रष्ट होता है ।। ४-२१६ ॥ क्यथ-वर्धा ढः ॥४-२२० ॥ अनयोरन्त्यस्य हो भवति ॥ कडइ । वडइ पत्रय-कलयलो ॥ परिअडइ लायगी । पहुवचनात् वृधेः कृत गुणस्य वर्धेश्चाविशेषेण ग्रहमाम् ।। अर्थ:-'क्याथ करना, उबालना, तपाना, गरम करना' अर्थक संस्कृत धातु 'क्वथ' के अन्त्य अक्षर 'थ्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'ढ' अक्षर को आदेश प्राप्ति होती है। इसी प्रकार से 'बदना, उमति करना' अर्थक संस्कृत-धातु 'वध वर्ष' के अन्त्य अक्षर 'घ' के स्थान पर भी प्राकृत भाषा में '' अक्षर की आदेश प्राप्ति होती है। प्राकृत भाषा में रूपान्तरित 'कट और बढ़ की अन्य साधनिकाऐं स्वयमेव साथ लेनी चाहियं । रूपान्तरित धातुओं के उदाहरण इस प्रकार हैं:-क्वभ्यते =(अथवा क्यथति) कहा वह क्वाथ करता है अथवा वह नबालता है। वर्धते लवक-कल कलावा पश्य-कलयलो उथल पाथल जैसा प्रचंड कोलाहल बढ़ता है। दुपरा उदाहरण इस प्रकार है:-परिवत लावण्य-परिअडवलायण = सौन्दर्य बढ़ता है। प्रमः---मूल-सूत्र में 'क्वथ-वर्ध' ऐसे दो शब्दों की स्थिति होते हुए भी 'वर्धा' जैसा बहुरचनात्मक क्रियापदीय रूप क्यों दिया गया है ?
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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