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________________ * प्राकृत व्याकरण $*$8006606062066666666660$. पर्यस: पलोट्ट - पल्ल - पल्हत्था: ।। ४-२०० ।। पर्यस्यतेरेते त्रय आदेशा भवन्ति ॥ पलोड़ | पट्ट | पन्हत्थ || अर्थ:- 'फेंकना, मार गिराना' अथवा 'पलटना विपरीत होना' अर्थक संस्कृत धातु 'परिं+ स्पर्यस्य के स्थान पर प्राकृत भाषा में तीन धातु रूपों को आदेश प्राप्ति होती है। जो कि क्रम से इस प्रकार है: - ( १ ) लाड, (२) पल्लट्ट, और (३) पहत्य तीनों के उदाहरण यो :- पर्यस्यति = (१) पो, (7) पलट, और (३) पहहत्थइ = वह पलटता है अथवा वह विपरीत होता है || ४-२०० ॥ निःश्वसे यः || ४-२०१ ॥ खइ । नीससइ । 1 *400*4 [ ४०१ 1 60480064464 निःश्वसेङ्ख इत्यादेशी वा भवति ॥ अर्थः--निःश्वास लेना' अथवा 'नीसासा दालना' अर्थक संस्कृत धातु 'निर् + श्वस्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'कब' धातु रूप की प्रदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'नीम' भी होता है। जैसे:- निःश्वसिति खइ अथवा मीससइ वह निःश्वास लेता है अथवा वह नोमासा डालता हूँ | ४-२०१ ॥ S उल्लसे रूस लोसुम्भ - पिल्लस- पुलमा - गुञ्जोल्लारोत्राः ॥ ४-२०२ उन्लसेर पडा देशा वा भवन्ति ॥ ऊसलह । अनुम्भ | लिइ । पुल श्राग्रह | गुजोलह । ह्रस्वत्वे तु गुज्जुल्लइ । श्रयइ | उल्लसह ॥ I अर्थ:-' उामित होना, आनंदित होना, खुश होना, तेज-युक्त होना' अर्थक संस्कृत धातु 'उत् + लम्=उल्लस्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से छह धातु रूपों की आदेश प्रानि होती हूँ | जो कि क्रम से इस प्रकार हैं: - (१ ) ऊसल, (२) ऊम्भ, (३) जिल्लव, (४) पुलआश्र, (५) गुञ्जीरज मौर (६) श्राम | सूत्र - संख्या १-८४ से गुजोल्ले' धातु-रूप में बछे हुए दीर्घ स्वर 'थो' के स्थान पर आगे संयुक्त व्यञ्जन 'हल' होने के कारण से 'उ' की प्राप्ति त्रिकल्प से हो जाती है, तदनुसार 'गुजोल्स' के स्थान पर 'गु'जुल्ल' रूप की अवस्थिति भी विकल्प से पाई जाती है। यों उपरोक्त आदेश प्राप्त छह धातुओं के स्थान पर सात धातु-रूप समझे जाने चाहिये । वैकल्पिक पक्ष होने से 'अक्स' भी होता है। आठों ही धातु रूपों के उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं: उल्लसति - (१) अलइ (२) ऊसुम्बई, (३) पिल्लमद्द, (४) पुल, (५) गु' जोल्लई, (६) गु ंजुल्लाह (७) श्ररोह और (८) उल्लइ वह उल्लसित होता हैं, अथवा वह आनंदित होता है, वह तेज-युक्त होता हूँ ।। ४-२०२ ।।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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