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________________ * प्राकृत व्याकरण * [ ३८३ ] व्यापेरोअम्गः ॥४-१४१॥ व्याप्नोतेरोअग्ग इत्यादेशो वा भवति ॥ श्रोअग्गइ । बायेइ ॥ अर्थः–'व्याप्त करना' अर्थक संस्कृत-धातु वि + श्राप्' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से 'अग' को आदेश प्राप्ति होती है । वैकल्पिक पक्ष होने से 'वाव' भी होगा । जैसे: व्याप्नोति अग्गह अथवा बाघेई वह व्याप्त करना है ॥ ४-१४१ ।। समापेः समारणः ॥ ४-१४२ ॥ समाप्नोतः समाण इत्यादेशो वा भवति । समाणइ । समावेइ ।। अर्थः-'समाप्त करना, पूग करना' अर्थक संस्कृत-धातु 'सम् + श्राप के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प मे 'समारण' की श्रादेश प्रानि होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'समाव' भी होता है। जैसे:समाप्नोति समाणइ अथवा समावड़ -- वह समाप्त करता है अथवा वह पूग करती है ।। ४--१४२ ॥ क्षिपे गलत्थाड्डक्ख-सोल्ल-पेल्ल-गोल्ल-लुह-हुल-परी-घत्ताः ॥४-१४३।। क्षिपेरते नवादशा या भवन्ति ।। गलत्थइ । अड्डाख ह । मोल्लइ । पेन्लइ । गोल्लइ । हृम्यत्वे तु णुल्लइ । छुहइ ! हुलइ । परीइ । घत्तइ । खिवह ।। अर्थः- फेंकना, बालना' अर्थक संरत धातु 'क्षिप के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से नत्र धातु रूपों की आदेश प्राप्ति होती है । जो कि कम से इस प्रकार है:-(१) गलस्थ, (२) अडकख, (३) सोल्ल, (४) पेल्ल, (५) गोल्ल, (६) छुह, (७) हुल, (८) परी और () पत्त। वैकस्मिक पक्ष होने से 'खिच' भी होगा। उपरोक्त धातुओं में से पांचों धातु 'गोल्ल' में स्थित 'प्रोकार' म्वर को विकल्प से 'वस्वत्व' की को प्राप्ति होने पर वैकल्पिक रूप से 'गोल्ल' के स्थान पर 'गुल्ल' कप की भी प्राप्ति हुआ करता है। संस्कृत-धातु 'क्षिप' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में उक्त ग्यारह प्रकार के धातु-कप उपलब्ध होते हैं। इनके उदाहरण कम से इस प्रकार हैं:-क्षिपत्ति = (२) गलत्थइ, (i) अडखा , (३) सोल्लइ, (४) पेल्लइ. (५) णोल्लइ, () पुलइ, (७) गुहाइ, (८) हुलइ, (९) परीइ, (१०) पत्ता १११) और विषद - वह फेंकती है अथवा वह डालता है ॥४-१४३ ॥ उत्क्षिपेगुलगुञ्छोत्थंघालत्थो भुत्तोस्सिक-हत्खुवाः ॥४-१४४ ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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