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________________ *प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित [ २६ dossroorrowroorkestraresandrosterdererrowserverseaseensex600000 इदुत इत्येव । बच्छा। बच्छ । जस्-शसोरिति द्वित्वमिदुत इत्यनेन यथासंख्या भावार्थम् । एवमुत्तरसूत्रे पि॥ अर्थः-प्राकृतीय इकारान्त उकारान्त पुल्लिंग शटदों में प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में मस्कृतीय प्राप्त प्रत्यय 'जस' के स्थान पर और द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्राप्त प्रत्यय 'शस्' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'णो' प्रादेश को प्राप्ति होती है। जैसे:-गिरयः अथवा तरवः राजन्ते गिरिणे अथवा तरुणो रेहन्ति अर्थात् पर्वत श्रेणियाँ अथवा वृत्त-समूह सुशोभित होते हैं । इस उदाहरण में संस्कृतीय प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय 'जम' के स्थान पर प्राकन में 'गो' आदेश को प्राप्ति हुई है। द्वितीया विभक्ति का उदाहरण इस प्रकार है:--गिरोन अथवा तरून् पश्य-गिरिणो अश्रवा तरुणो पेच्छ अर्थात् पर्वत श्रेणियों को अथवा वृक्षों को देखो। इस उदाहरण में संस्कृतीय द्वितीया विभक्ति के बहुवचन के प्रत्यय 'शस्' के स्थान पर प्राकृत में 'गो' श्रादेश को प्राप्ति हुई है । वैकल्पिक पक्ष होने से गिरयः और गिरीम का प्राकृत रूपान्तर गिरी' भी होता है। इसी प्रकार से तरवः और तरून् का प्राकृत रूपान्तर 'तरू' भी होता है। प्रश्नः- इकारान्त उकारान्त पुल्लिग शब्दों में हो 'जम् और 'शम' के स्थान पर ‘णो' आदेश प्राप्ति होता हैऐसा क्यों कहा गया है ? उत्तर:- इकारान्त उकारान्त शब्द नपुंसक लिंग वाले और स्त्रीलिंग वाले भी होते हैं, ऐसे शब्दों में 'जस्' और 'शस के स्थान पर 'गो' श्रादेश-प्राप्ति नहीं हुआ करती है। जैसे:-धीनि-दहीई और मधूनि = महूई। इन नपुसक लिंग वाले लदाहरणों में प्रथमा और द्वितीया में जस्' तथा 'शस्' के स्थान पर 'गो' आदेश-प्राप्ति नहीं होकर 'ई' आदेश-प्राप्ति हुई है। स्त्रीलिंग के उदाहरण:-बुद्धयः और बुद्धोः = बुद्धी तथा धेनवः और धनूः घेणू । इन इकारान्त और उकारान्त स्त्रीलिंग वाले शब्दों में प्रथमा और द्वितीया में 'जस्' तथा 'शस' के स्थान पर 'गो' श्रादेश-प्राप्ति नहीं हार अन्त्य स्वर को हो आदेश रूप से दोपता की प्राप्ति हुई है.। यो समझ लेना चाहिये कि केवल पुल्लिा इकारान्त उका. रान्त शब्दों में ही 'जस' तथा 'शस' के स्थान पर 'णो' आदेश पानि वैकल्पिक रूप से हुआ करती है। मदनः-'जस्' और 'शम' ऐमा उल्लेख क्यों किया गया है ? उत्तर:-इकारान्त उकारान्त पुल्लिग शब्दों के सभी विभक्ताय बहुवचनीय रूपों में से केवल प्रथमा और द्वितीया विभक्ति के बहुवचनीय रूपों में हो ' आदेश प्राप्त प्रत्यय का प्राप्ति हुश्रा करतो है; अन्य किसी भी विभक्ति के बहुवचन में 'णो' श्रादेश-प्राप्त प्रत्यय को प्राप्त नहीं होती है। ऐसा विशेषता पूर्वक तात्पर्य प्रदर्शित करने के लिये ही 'जस्' और 'शप्त' का नाम-निर्देश करना पड़ा है। जैसे:-गिरिम् अथवा तहम् गिरि अथवा तर याने पहाड़ को अथवा वृक्ष को; इन उदाहरणों में द्वितीया धिमक्ति के एक वचन का प्रत्यय 'म्' प्राप्त हुआ है, न कि 'णा' आदेश-प्राप्त प्रत्यय, अतएव सत्र में
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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