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________________ # प्राकृत व्याकरण * ********** *********$$$$$$$*** विवृतेः ॥ ४- ११८ ॥ विसेस इत्यादेशो वा भवति || दंसह । विवदुः ॥ [ ३७७ १ अर्थः- 'घसना, धनकर रहना, ( गिर पड़ता !' अर्थक संस्कृत धातु 'विवृत्' के स्थान पर प्राप्त भाषा में विकल्प से इन धातु रूप को प्रदेश मामि होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से fear भी होगा । जैसे:--विवर्तते स अथवा विवट्टर - वह धंसता है, वह धम कर रहती हैं ( अथवा वह गिर पड़ती है ) ।। ४-११८ ॥ = कथे रटः ॥ ४--११६ ॥ कर इत्यादेशो वा भवति || अ | कढ | अर्थ:- ''बाथ करना' 'उबालना काता' चर्थक संस्कृत धातु 'कथ' भाषा में विकल्प से 'श्रट्ट' धातु रूप की श्रादेश प्राप्ति होता है। वैकल्पिक पक्ष प्राप्ति होगी। जैसे:- क्वथति अट्टइ अथवा कढ=यह क्वाथ करता है--- पकाती है । ४ १२६/ स्थान पर प्राकृतहोने से 'कढ' को भी -- उचालता है अथवा वह प्रन्थे गण्ठः ॥ ४- १२०॥ ग्रन्थेष्ठ इत्यादेशो वा भवति ॥ गएठ । गण्ठी ॥ अर्थ :- गूँथना रचना बन ना' अर्थक संस्कृत धातु 'प्रन्थ' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'ठ' (धातु) रूप की आदेश प्राप्त होता है। पक्षान्तर में 'ग्रंथ' की भी प्राप्ति होगी। जैसे:-ग्रध्नाति = गण्ठङ्ग अथवा गंधर = वह गूँथती है अथवा वह रचना करता है । संस्कृत स्त्रीलिंगी संज्ञा शब्द 'प्रन्थि' का प्राकृत रूपान्तर गंठी होगा। 'गंठी' का तात्पर्य है 'गाँठ' अथवा 'जोड़' | 'गण्ठ' धातु से ही गंठी शब्द का निर्माण हुआ है ॥ ४-१२० ।। मन्थे घुसल - विरोलो ॥ ४-१२१ ॥ मन्थे सल बिरोल इत्यादेशौ वा भवतः ॥ घुमलइ । विरोलइ । मन्थइ | अर्थ:--' गथना, बिलोड़ना करना' अर्थक संस्कृत धातु 'साथ' के स्थान पर प्राकृ भाषा में विकल्प से 'घुपल और विशेज' ऐसे दो धातु रूपों को आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से पक्षान्तर में 'मन्थ' की भी प्राप्ति होगी। जैसे:-मन्थति = घुसला, विरोल अथवा मन्यन्त्र मता है, मह मर्दन करता है अथवा वह विलोड़न करती है ।। ४-१२१ ।।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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