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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित अनुजेः परिग इत्यादेशो वा भवति । पडिअम्गइ | अणुवञ्चः ॥ अर्थ:- 'धनुसरण करना, पीछे जाना' अर्थक संस्कृत धातु 'अनु + व्रज्ञ' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'डि' (धातु) रूप को आदेश प्राप्ति होती है । वैकल्पिक पक्ष होने से 'श्रत्रच्च' भी होगा | उदाहरण क्रम से यों हैं:- अनुषजति पडिअग्गह पक्षान्तर में अणुवच्चइ वह अनुसरण करता है, वह पीछे जाती है ।। ४-१०७ ॥ [ ३७४ ] 00000001 अजैविंदवः ||४- १०८ अजेर्विधव इत्यादेशो भवति ॥ वि । श्रज्जइ ॥ अर्थ:--' उपार्जन करना, पैदा करना' अर्थक संस्कृत धातु 'अर्ज' के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'कल्प से 'विदव' धातु रूप की प्रदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'अज' भी होगा | उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं: अर्जयति = पक्षान्तर में अज्जइ वह उपार्जन करता है, अथवा वह पैदा करती है ॥४-१०८ ।। युजो जुञ्ज जुज्ज-जुप्पाः ॥४- १०६ ॥ युजी जुञ्ज जुज्ज जुप्प इत्यादेशा भवन्ति ।। जुञ्ज ! जुज्जइ । जुष्पई ॥ अर्थ:-'जोड़ना, युक्त करना' कार्थक संस्कृत धातु 'युज' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'जुख, जुज्न और जुप्प' ऐसे तीन धातु रूपों को आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'जुज' की भी प्राप्ति होगी। जैसे:- युज्यते = (१) जुइ, (२) जुन, (३) जुप्पड़ पक्षान्तर में जुजइ= वह जोड़ता है, वह युक्त करता है ।। ४-१०६ ।। भुजो भुञ्ज - जिम जेम - कम्मागृह - चमढ - समाए - चड्डाः ॥ ४- ११० ॥ भुज एतेऽष्टादेशा भवन्ति ।। ख । जिमह । जेमइ । कम्मे । श्रहह । समाग चमढ | चहड़ | अर्थ:-'भोजन करना, खाना' अर्थक संस्कृत धातु 'भुज्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से आठ (धातु) रूपों की आदेश प्राप्ति होती है । (१) भुज, (२) जिम, (३) जेम, (४) कम्म (५) ह, (६) चमढ़, (७) समाण और (२) च । वैकल्पिक पक्ष होने से 'भुज' की प्राप्ति होगी । इनके उदाहरण इस प्रकार है: -- सुनाती ( अथवा ) ते = (१) जद, (२) जिमइ, (३) जेमइ,
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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