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________________ $6666666666666666�S�DO * प्राकृत व्याकरण **********6600000 1 [ ३६६ ] खनेर्वेझडः ॥ ४-८६ ॥ खचते वेड इत्यादेशो वा भवति || वे अब खच ॥ अर्थः- 'जड़ना' अर्थक संस्कृत धातु 'खच्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'वेड' धातु का आदेश प्राप्ति होती है। पक्षान्तर में 'खच' भी होगा जैसेः खति वेअड अथवा खचइ वह जड़ता है -- जमाता हूँ ।। ४-८६ | पचे: सोल्ल - पउलौ ॥४-६०॥ = 2001 पचतः सोल्ल पउल इत्यादेशौ वा भवतः ।। सोलह । पउलइ | पयइ ॥ क अर्थ:- 'काना' अर्थ संस्कृत धातु 'पत्र' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'सोल्ल और पडल' ऐसे दो धातु की आदेश प्राप्ति होती है। रूपान्तर 'पय' भी होगा। जैसे:- पचति = सोल्लइ और पउल अथवा पथइ - वह पकाता है ।। ४३० ॥ सुड्डा व हेड - मेल्लोस्सिक रेश्रवल्लुिञ्छ- धंसाड़ाः ॥ ४-६१ ॥ मुखतेरते सप्तादेशा वा भवन्ति || छड्ड | अवहेडइ | मेल्लइ । उस्सिक्कद्द | रेावइ । शिलञ्छ | साडड़ पक्षे | मुड़ । • 4 अर्थः-छोड़ना-त्याग करना' अर्थक संस्कृत-वातु 'मुच' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से सात धातु की प्रदेश प्राप्ति होती है। जो कि कम से इस प्रकार हैं: - ( 1 ) छड, (२) अवहेड, (३)मेल, (४) उस्सिक (५) (अव, (६) णिच्छ और (७) धंसाड, पक्षान्तर में 'मुभ' भी होगा। य आठों ही धातु रूपों के उदाहरण क्रम से इम प्रकार है:- मनति = (१) छल्डइ ( २ )अव हेडइ, (३)मलाइ, (४) उस्कर, (tras, (६) पिल्लुच्छ, (७)साइ अथवा मुअइ-वह छोड़ता है श्रथवा वह त्याग करती है ।। ४-६१ ।। दुःखे पिव्वलः || ४-६२ ॥ दुःख विषयः खिन्चल इत्यादेशो वा भवति || शिवलेइ । दुःखं मुञ्चतीत्यर्थः ॥ अर्थः-- 'दुःख को छोड़ना' अर्थ में संस्कृत धातु 'मुच् के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'विल' (धातु) को आदेश प्राप्ति होती है । जैसे:- दुःखं मुध्वति = पिव्य=बह दुःख को छोड़ता है | पक्षान्तर में दुहं मुइ होगा ।। ४०-६२ ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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