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________________ [ ३६६ । * शियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * +++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ अर्थ:-'गन्ध फैजना' इस संपूर्ण अर्थ में प्राकृत-भाषा में विकल्प से 'महमह' धातु की आदेश प्राप्ति होती है। जहा पर 'गन्ध फैलता है' ऐसे अर्थ में 'गन्ध' शब्द स्वयमेन विद्यमान हो वहां पर 'महमह' धातु रूप का प्रयोग नहीं किया जा सकता है, किन्तु 'पर' धातु रूप का ही प्रयोग किया जा सकेगा। इसलिए वृत्ति में 'गन्ध इतिकिम् = गन्ध ऐमा क्यों ? प्रश्न उठाकर आगे पर किया पद द्वारा यह समाधान किया गया है कि 'गन्ध' कर्ता के साथ 'पसर' किया का प्रयोग होगा । सः-मालती-गन्धः प्रसरति = मालइ गन्धी पसरड़ = मालती-लता का गन्ध फैलता है । यो महामह' धातु-रूप की विशेष स्थिति को समझना चाहिये ।। ४.७८ ।। निस्सरेणीहर-नील-धाड---वरहाडाः ॥४-७६ ॥ निस्सरतेरेते चत्वार आदेशा वा भवन्ति ॥णीहरइ । नीलइ । धाडइ । वरहाउछ । नीसरह ॥ अर्थ:--'बाहर निकलना' अर्थक संस्कृत-धातु निस् + स' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से चार धातु-रूपों की आदेश प्राप्ति होती हैं। जो कि क्रम से इस प्रकार है:-(१) पीहर (२) नोल (३) धान और (४) वरहाड । वैकलिक पक्ष होने से 'निस् + सू' के स्थान पर 'नीसर' धातु की भी प्राप्ति होगी । पाँचों के उदाहरण इस प्रकार है:--नि:सरति (!' णीहरइ, (.) नीलड़, (३) धाउन, (४) परहाडा, और (३)मीसरड् = वह बाहिर निकलता है ।। ४.७६ । जार्जग्गः ॥४-८०॥ जागर्ने जग्ग इत्यादेशो वा भवति ।। जग्गइ । पक्ष जोगाइ ॥ अर्थ:-'जागना अथवा सचेत-सावधान होना' अर्थक संस्कृत-धातु 'जा' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से 'जमा' धातु की श्रादेश प्राप्ति होता है । वैकल्पिक पक्ष होने से 'जागृ' के स्थान पर 'जागर' धातु-की भी प्रामि होगा। दोनों के उदाहरण क्रम से इस प्रकार है:- जागर्ति = । अथवा जागरइ-वह जागता है-वह निद्रा त्यागता है अथवा वह सावधान सचेत होती है ।।४-८ ।। व्याप्रेराअड्डः ॥४-८१॥ व्याप्रियतेराअड्ड इत्यादेशो वा भवति ॥ आअड्डे । बावरे ॥ अर्थः-'ध्यापत होना, काम लगना' अर्थक संस्कृत धातु 'न्या + पू' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'भाइ' धातु की अादेश प्राप्ति होती है । वैकल्पिक पक्ष होने से ज्या+' के स्थान पर
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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