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________________ * प्राकृत व्याकरण [३५] प्लावरोम्बाल-पव्वाल्लौ ॥४-४१॥ मागते कान्तरसामा गगजः ।। बोन्सालइ । फ्याला । पावे।। अर्थः-प्रेरणार्थक प्रत्यय एयन्त सहित भिगोने तर बतर करने' अर्थक संस्कृत-धातु 'लाव' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में सोम्बाल और पम्यान ऐप्ती वो धातुओं की विकल्प से आदेश प्राप्ति होती है। पक्षान्तर में मात्रय के स्थान पर 'पाव' म्प को भी प्राप्ति होगी । बैंसे-प्लावयति आभ्वाला, परषालड़ और पापेइ = वह भिगोवाता है। वह तर बतर करवाता है । वह भिंजवाता ॥४-४१॥ विकोशेः पक्खोडः ॥४-४२ ॥ विकोशयतेनाम थातीण्यन्तस्य पक्खोड इत्यादेशो वा भवति ।। पक्खोडइ । विकोसइ ॥ अर्थ:-प्रेरणार्थक प्रत्यय एयन्त पहित विकसित फसना, फौलाना' अर्थक संस्कृत-पातु 'विकोश' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'पक्कास' धातु रूप को प्रादेश प्राप्ति होती है। पक्षान्तर में विकोशय के स्थान पर विकास रूप को भी प्राप्ति होगी । जैसे-विकोशयतिपसोडइ अथवा विमोसह - बह विकसित कराता है, वह फैलाता है ।। ४-४२ ।। रोमन्थे रोग्गाल-बगोलो॥४-४३ ॥ रोमन्थे मधातोण्यन्तस्य एतावादेशौ वा भवतः ॥ श्रोग्गालइ 1 वग्गोलइ । रोमन्थह ॥ अर्थ:-- 'पबाई हुई वस्तु को पुनः चाना' इस अर्थ में काम पाने वाली धातु रोमन्थ' के साथ गुने हुए प्रेरणार्थक प्रत्यय एवन्त पूर्वक सम्पूर्ण धातु के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'ग्गाल और वमोल' आदेश की प्राप्ति विकल्प से होती है । रक्षान्तर में रोमन्थ' का सद्भाव भी होगा। जैसे-रोमन्थयति भोग्गालइ, वग्गोलह अवश रोमन्थरवह चबाई हुई वस्तु को पुनः चबाता है-वह पगुराता है ।।४-४।। फमे र्णिहुवः ॥ ४-४४॥ फौः स्थार्थएयन्तस्य णिहुच इत्यादेशो का भवति ॥ णिहुवइ । कामेइ॥ अर्थ:-स्वार्थ में मेरणार्थक प्रत्यय एबन्त पूर्वक संस्कृत-धातु का के स्थान पर प्राकृत-भाषा में 'गिध' को भादेश प्राप्ति विकल्प से झेता ने । प्रहरणार्थक शिस् अस्यप की संबोजना से 'कम' धातु का रूप 'काम' हो जायमा । जैसे-कामयते = णिहुवह अथवा कामेइ ८ वह अपने लिये काम-भोगों की इच्छा करता है अथवा इच्छा करता है ।।-४११,
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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