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________________ * अकृत व्याकरा * [ ३४७ ] mratarrassooraseodotkomorrestsewordNetwORRONIROMORPHARI पिवः पिज्ज-डल्ल-पट्ट-घोट्टाः ॥ ४-१०॥ पिनते रेते चत्वार श्रादेशा वा भवन्ति ।। पिज्जह । डन्नइ । पट्टइ । पोइ । पिअइ ॥ अर्थ:-संस्कृत धातु 'पा=पिच के स्थान पर प्राकृत में विकल्प से पिज्ज, हल्ल. पट्ट और घोट्ट' इन चार आदेशों की प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पञ्च होने से पिब के स्थान पर 'पिम रूम भी होता है। उदाहरण इस प्रकार है:-पिचति-पिण, डल्लुइ, पट्टइ और घोट्टह-यह पीता है; वह पान करता है। पक्षान्तर में पिचति के स्थान पर पिअइ रूप को प्राप्ति भी होगी । ४-१०। उद्वातेरोरुम्मा वसुआ ॥४-११ ॥ उत्पूर्वस्य चातेः श्रोमा बसुअस इत्येवाचादेशौ वा मवतः ।। श्रोरुम्माइ। यसुभाइ । उचाइ॥ ___ अर्थ:-पतु उपसर्ग सहित 'का' धातु के स्थान पर प्राकृत में विकल्प से 'प्रोसम्मा और ससुमा' रूपों की भावेश प्राप्ति होती है। पक्षान्तर में 'उना = उद्वा' के स्थान पर 'उज्या' रूप भी होमा। उदाहरण यों है:--उदाति = मोहम्मा, वसुआ और उब्याइ-बह हवा करता है।४-११ ।। निद्रातेरोहीरोङ घौ ॥ ४-१२ ॥ निपूर्वस्य द्रातः मोहीर उच्च इत्यादेशो या भवतः ॥ मोहीरइ । उच्चइ । निदाइ । अर्थ:-नि उपसर्ग सहित 'दा' धातु के स्थान पर प्राकृत में शिल्प से 'ओहीर और जब इन दो रूपों की प्रादेश प्राप्ति होती है । पचान्तर में निद्रा के स्थान पर 'निहा रूप भी होगा। जैसेनिद्राति-ओहरिङ, उबद और निहाई - वह निद्रा लेता है ।। ४-१२ ।। आ राइग्घः ॥४-१३ ॥ आजियते राइन्ध इत्यादेशो वा भवति ॥ पाइन्धइ । अग्धाइ ।। अर्थ:-संकृत धातु 'बाजिन' के स्थान पर प्राकृत में विकल्प से 'आइग्घ' रूप की आदेश प्राप्ति होती है। पक्षान्सर में अन्धा रूप भी होगा । जैसे-भाजनति-आइग्बड़ और अग्याइन्यह सूबता है। स्नातरम्भुत्तः ॥४-१४ ॥ नातेरभुत्त इत्यादेशो चा भाति ।। प्रसइ । हाइ ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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