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________________ प्राकृत व्याकरण * [३११ ] •dostssroresasexstrorkerosecoratoriesrorseenakarsankrterosroom गच्छिहामि . गच्छिरसं । गच्छं । गच्छिमो । गच्छिहिमो । गच्छस्सामो । गच्छिहामो। गच्छिहिस्सा ! गच्छिाहित्था । एवं मुमयोरपि ।। एवं रुदादीनामप्युदाहार्यम् ॥ अर्थ:-सूत्र संख्या ३-१७१ में जिन संस्कृत धातुओं के प्राकुन रूपान्तर भविष्यत् काल-पाचक अवस्था के अर्थ में रूढ रूप से प्रदान किये गये हैं; वन रूढ रूपों में वर्तमानकालयोनक पुरुष बोधक प्रत्ययों को संयोजना करने से उसी पुरुष बोधक अर्थ की अभिव्यञ्जना भविष्यत काल के अर्थ में प्रकट हो जाती है । वैकहियक रूप से कभी कभी उन रूढ रूपों के श्रागे भविष्यलाल बोधक प्रत्यय 'हि' की अथवा तृतीय पुरुष के सद्भाव में 'स्मा, हा' की अथवा 'हिस्मा. हित्था' की प्राप्ति भी होती है । तस्पश्चात् पुरुष बोधक प्रत्ययों की जोड़ क्रिया की जाती है। सागंश यह है कि इन रूद रूपों में भविष्यात काल योधक मूल प्रत्यय 'हि' का वैकल्पिक रूप से लोप होता है। शेष सम्पूर्ण क्रिया भविष्यत्काल के प्रदर्शन के अर्थ में अन्य धातुओं के समान ही इन रूढ प्राप्त धातु रूपों के लिये मी जानना चाहिये । उदाहरण इस प्रकार है:-श्रोष्यति-मोच्छिइ-वह सुनेगा; पक्षान्तर में भविष्यत्-काल-अर्थक प्रत्यय हि' की प्राप्ति होने पर प्रोष्यति का प्राकृत-रूपांतर 'सोचिहिइ' = 'वह सुनेगा' पा ही होगा। प्रथम पुरुष के बहुवचन का दृष्टान्तः~-प्रोष्यन्ति = सोच्छिन्ति और पक्षान्तर में सोच्छिहिन्तिब्ध सुनेगे । द्विनाय पुरुष के पावन का हान्त:-- नोव्य मजाक पि आर पक्षाना में लोहिनि = सुनगा । द्वितीय पुरुष के बहुवचन का दृष्टान्तः--श्रीध्यय-पोकिया और साकिछु ; पक्षान्तर मेंसोििहत्था और सोच्छि'हह-तुम सुनोगे। तृतीय पुरुष के एकवचन का दृष्टान्तः-श्रोष्यामि = मोच्छिमि; पक्षान्तर में—मान्छिाहमि, सोच्छिसामि, मांच्छिहामि, सोच्छिम्म और मोच्छं = मैं सुनूँगा । ततीय पुरुष के बहुवचन का दृष्टान्त-प्रोष्यामः = पोच्छि हमा; पक्षान्तर में सोच्छिम्सामो, सोपिछ हामो, सोच्छिहिस्सा, सोच्छिहित्था; सोच्छिहिमु और मोच्छिमामु तथा सोफिलहामु; मोच्छिहिम और सोस्सिाम तथा मोच्छिहाम - हम सुनेंगे ! इमी सिद्धान्त की संपुष्टि प्रन्थकार पुन: 'गम् = गच्छ' धातु द्वारा करते हैं:-प्रथम पुरुष के एकवचन का दृष्टान्त-गमिष्यनि- गरिछद; पक्षान्तर में गच्छिहिप-यह जावेगा । प्रथम पुरुष के बदवचन का दृधान्तः-गमिष्यन्ति गमछन्ति, पक्षान्तर में गमिछहिन्नि वे जावेंगे । द्वितीय पुरुष के एकवचन का दृष्टान्त:-गमिष्यसि गम्लिसि; पक्षान्तर में गच्छिहिसि = तू जायेगा । द्वितीय पुरुष के बहुवचन का दृष्टान्त-मिन्यथ – गच्छिस्था और गम्छिर पक्षान्तर में गच्छिहित्था और गम्छिमिह - तुम जानोगे ' नतीय पुरुष के एकवचन का दृष्टान्तः-गमिष्यामि = गचिमि पक्षान्तर में गच्छहि में, गच्छिरसामि. गांच्छहामि, पिस्सं और गच्छं = मैं जाऊँगा। तत्तीय पुरुष के बहुवचन का शान्त:--गमिष्यामः = गच्छिमो; पक्षन्तर में गच्छहिमो, गच्छिमामी, गाच्छहामी, गछि हिस्सा, गच्छिहित्था गििहमु, गाच्छस्सामु, गांच्छहामु, गछिहिम, गन्छिस्लाम और गच्छिहाम : हम जायेगे। इसी प्रकार से शेष रही हुई उपरोक धातुओं के भी रूप स्वयमेय समझ लेने पाहिये।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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