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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * 20006004 [ २६६ 1 62604 भामइ में सुत्र संख्या २-७६ से संस्कृत धातुम्' में स्थित 'व्यञ्जनका लोप: ३-१५३ से प्राप्तांग 'अम्' में स्थित आदि स्वर 'य' के स्थान पर आगे प्रेरणाथ क-बोधक-प्रत्यय का वैकल्पिक रूप से लोग कर देने से 'आ' की प्राप्तिः ४ २३६ से प्राप्त; भाम्' में त्रिकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति और ३-१३६ से प्राप्तांग 'भाम' में वर्तमानकाल के प्रथम पुरुष के एकवचनाथ में संस्कृतिीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय को प्राप्ति होकर तृतीय रूप मामइ भी सिद्ध हो जाता है । भामेइ में 'भाग' अंग की प्राप्ति उपरोक तृतोय रूप में वर्णित सानिका के समान ही होकर सूत्र-३-१३ सेके ्' को प्राप्ति और ३-९३६ से सुतीय रूप के समान ही 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर चतुर्थ रूप भामेइ सिद्ध हो जाता है । भयावह और भमाचेइ में सूत्र संख्या ३-१४६ से पूर्वोक्त रोति से प्राप्तांग भमू में प्रेरणार्थकभाव में वैकल्पिक रूप से संस्कृतीय भरतव्य प्रत्यय 'श्रय' के स्थान पर प्राकृत में 'आव और आवे' प्रत्यय का क्रम से प्राप्ति और ३- १३६ से दोनों प्राप्तांगों 'ममाव और समावे' में वर्तमानकाल के प्रथम पुरुष के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तभ्य प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रेरणार्थक भाव में अन्तिम दोनों रूप 'भाव और भमाई' कम से हो जाते हैं । ३-१५१।। लगावी - क्त-भाव - कर्मसु ॥ ३ - १५२ ॥ । 1 1 ः स्थाने लुक् श्रावि इत्यादेशौ भवतः क्तो मात्र कर्मविहिते च प्रत्यये परतः ॥ कारि । कराविअं । द्वासिनं । इसावित्र्यं ॥ खामियं । खमाविश्रं || मा कर्मणोः । कारीअ । करावी | कारिज्जइ । कराविज्ज | हासies | हसावी | हासिज्ज | साविज्जइ ॥ अर्थ :- जिस समय में मातु में भूत कृत सम्बन्धी प्रत्यय ल' लगा हुग्रा हो अथवा भावन्त्राज्य एवं कर्मखिवाच्य सम्बन्ध प्रत्यय लगे हुए हों तो उन धातुओं में प्रेरणा मात्र की निर्माणअवस्था में सूत्र-संख्या ३-१४६ में वर्णित प्रेरणार्थक भाव-प्रदर्शक प्रत्यय 'ऋतू, एन्, आव और अवे' का या तो लोप हो जायगा अथवा इन प्रत्ययों के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'आम' प्रत्यय की श्रादेश प्राप्ति हो जायगी और उन धातुओं का भून कृदन्त अर्थ सहित अथवा भाववाच्यकर्मणिवान्य अ महितप्रेरणार्थक रूप का निर्माण हो जायता । उदाहरण इस प्रकार हैं:- कारितम् कारिथं श्रथवा कशविश्रं=कराया हुआ; हानितम् हासिनं श्रथवश हताविष्यं - हॅनाया हुआ और क्षामितम्खामि अथवा रखमात्रिभं=क्षमाया हुआ; ये उदाहरण भूतकृदन्त सम्बन्धी हैं इनमें से प्रथम रूपों में प्रेरणार्थक किया का सद्भाव प्रदर्शित किया जाता हुआ होने पर भी इनमें सूत्र संख्या ३-१४४ के अनुसार प्राकृत में प्राप्तव्य खिजन्त-अथ चोधक प्रत्यय 'ऋत् एत आव और आवे' का लोन प्रदर्शित किया गया है । → 3
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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