SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २६३ ] मानकाल के प्रथम पुरुष के एकवचन में संस्कृतिीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पातीय प्रेरणार्थक क्रिया का रूप जाणावेद सिद्ध हो जाता है । पाययति संस्कृत प्रेरणाथक क्रिया का रूप है। इसका प्राकृत रूप पाएद्द होता है। इसमें सूत्रसंख्या ३-९४६ से मूल प्राकृत धातु 'पा' में णिजन्त अर्थात् प्रेरणार्थक भाव में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'थय' के स्थान पर प्राकृत में 'Q' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-१३६ से प्राप्त प्रेरणार्थक क्रिया रूप 'पा' में वर्तमानकाल के प्रथम पुरुष एकवचन में संस्कृती प्राप्तव्य प्रत्यय 'लि' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृत्तीय प्रेरणार्थक क्रिया का रूप पाए सिद्ध हो जाता है । * प्राकृत व्याकरण * ******......000 भारत संस्कृत पेरणार्थका प्राकृत रूप भावे होता है। इसमें सूत्रसंख्या -१-१० से मूल प्राकृत धातु भाव में स्थित अन्त्य स्वर 'स' का आगे खिजन्त बोधक प्रत्ययात्मक स्वर 'ए' का सद्भाष होने से लोप: १-१४६ से प्राप्त हलन्त प्रेरणार्थक क्रिया 'भाव' में संस्कृती प्राप्तव्य प्रत्यय 'काय' के स्थान पर प्राकृत में विजन्त-बोधक प्रत्यय 'ए' को प्राप्ति और ३-१३६ से प्राप्त प्रेरणार्थक किया रूप 'भाव' में वर्तमानकाल के प्रथम पुरुष के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तब्य प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रस्थय की प्राप्ति होकर प्राकृतीय प्रेरणार्थक क्रिया का रूप भाषे सिद्ध हो आता । ३-१४६॥ गुर्वादेरवि ।। ३-१५० ॥ : देः स्थाने अधि इत्यादेशो वा भवति || शोषितम् । सोसवियं । सोसिनं ॥ तोषितम् । तोसविनं । तोसिचं ॥ अर्थ:-जिन धातुओं में आदिश्वर गुरु अर्थात दीर्घ होता है, उन धातुओं में जिस अर्थ में प्रेरणार्थक भाव के निर्माण में उपरोक्त सूत्र संख्या: ३-१४६ में वर्णित णिजन्त- बोधक प्रत्यच श्रत, 'ए' आम और आ' में से कोई भी प्रस्थ नहीं जोड़ा जाता है; किन्तु केवल एक ही प्रत्यय 'अति' की प्राप्ति वैकल्पिक रूप से हुआ करती है। तदनुसार आदि-स्वर दीर्घ वाली धातुओं में जित अर्थ में कभी 'अर्थ' प्रत्यय जुड़ता भी है और कभी किसी भी प्रकार के प्रत्यय को नहीं जोड़ करकं णिजन्त- अर्थ प्रदर्शित कर दिया जाता है । उदाहरण इस प्रकार है:- शोषितम् = सोचियं प्रथवा सोसिअं सुखाया हुआ; तोषितम् = तोलविथं अथवा तोसि = संतुष्ट कराया हुआ | इन उदाहरणों में अर्थात सोमवयं और तोसवि में तो णिजन्त अर्थ में 'वि' प्रत्यय जोड़ा गया है, जबकि द्वितीय क्रम वाले 'सोसिश्रं' और तोंषिथं' में जिन्स अर्थ में 'वि' प्रत्यय की बैंकfers स्थिति घतलाते हुए एवं प्रभाव स्थिति प्रदर्शित करते हुए किसी भी प्रकार के रिजन्त-बोधक प्रत्यय की संयोजना नहीं करके
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy