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________________ [२४४ ] * पियोदय हिन्दी व्यारूपों सहित * moovernoooooootonormeterrorseenetworkrrearretarrowessoonwermire में वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के एक वचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'मि' के समान ही प्राकृत में भी 'मि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृतीय रूप हसामि सिद्ध हो जाता है । पे संस्कृत का वर्तमानकाल को तृतीय पुरुष का एकवचनान्त पात्मनेपदीय अकर्मक क्रियापद का रूप है । इसका प्राकृत रूप वेवामि होता है । इसमें सूत्र संख्या -२३१ से मूल संस्कृत धातु वेप में स्थित 'प' के स्थान पर 'व' की प्राप्ति; ४-२३६ से प्राप्त हलन्त धातु 'ये व मे विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति;३-१५४ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'अ' के स्थान पर र्घ स्वर 'श्रा की प्राप्ति और ३-१४१ से प्रान प्राकृतीय पातु 'धेवा' में वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के एकत्रचन में संस्कृतीय श्रात्मनेपदीय प्राप्तव्य प्रत्यय'इ' के स्थान पर प्राकृत में 'मि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्राकृनीय रूप धामि सिद्ध हो जाना है। हे बहु-ज्ञानक ! संस्कृत का संबोधन का एक वचनान्त पुंल्लिंग विशेषण को रूप है। इसका प्राकृत-रूप हे बहु-जाण्य ! होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-८३ से 'ज्ञ, 3 ज+ब' में स्थित 'ब' व्यंजन का लोप होने से 'ज्ञा' के स्थान पर प्राकृत में 'जा' की प्राप्ति; १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति; १-१८७ से 'क' व्यंजन का लोप, १-१८० से लोप हुए व्यंजन 'क' के पश्चात शेष रहे हुए 'अ' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति और ३-३८ से संबोधन के एक वचन में प्रश्रमा विभक्ति के समान ही ३-२ के अनुसार प्राकृतीय प्राप्तम्य प्रत्यय दो-श्री' का अभाव हो कर प्राकृतीय रूप हे पहु-जाणाय । सिद्ध हो जाता है। रोषितुम् सम्कृत का हेत्वर्थ कुदन्त का रूप है। इसका प्राकृत रूप रूसिउं होता है। इसमें सूत्र-- संख्या-४-२३६ से मुल सस्कृत-धातु 'रूप' में स्थित हस्व स्वर 'ड' को प्राकृत में दीर्घ स्वर 'क' की प्राप्ति, १.९६० से 'ष' के स्थान पर 'स्' की प्राप्ति, १-१७७ मे 'न व्यञ्जन का लोप और १-२३ से अन्तिम हलत 'म' के स्थान पर अनुषार को प्राप्ति होकर प्राकृतीय रूप रूतिउं सिद्ध हो जाता है। शकोम संस्कुत का वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष का एकवचनान्त परस्मैपदीय अकर्मक क्रियापद का रूप है । इसका प्राकृत रूप सवक्त होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' के स्थान पर 'स' की प्राप्ति; ४-२३० से 'क' को द्वित्व 'क्क' की प्रामि; प्राकृत में गण भेद का अभाव होने से संस्कृत धातु 'शक' में पंचम-गण-द्योतक प्राप्त विकरण प्रत्यय 'नो-नु-नु' का कृत में अभाव; तदनुसार शेष रूप से प्राप्र धातु 'सक्क' में ३-१४१ की वृत्ति से वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के एकवचन में प्राकृत में प्राप्तव्य प्रत्यय "मि' में स्थित इस्व स्वर 'इ' का लोप होकर हलन्त रूप से प्राप्त 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त हलन्त प्रत्यय 'म्' को अनुस्वार की प्राप्ति होकर प्राकृत क्रियापद का रूप सक्क सिद्ध हो जाता है। 'न' अव्यय की सिद्धि सूत्र संख्या १-5 की गई है। निये संस्कृत का वर्ततमान काल का तृतीय पुरुष का एक वचनान्त यात्मनेपदीय षष्ठ--गणीय अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप मरं होता है। इसमें सत्र संख्या ४-२३४ से मूल संस्कृत
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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