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________________ [१८४] *प्राकृत व्याकरवा * womensorrorsewissattreerintensterstreetstrekkersitionerstotram सम्हाण आदेश-रूप से प्राप्त होते हैं। तत्पश्चार-पून-संख्या १.१७ के विधान से उपरोक्त प्राप्त दश रूपों में से छठू रूप से लगाकर दशवें रूप के अन्त में आगम रूप अनुस्वार की वैकल्पिक रूप से प्राप्ति हुआ करती है। तदनुसार पांच रूपों का निर्माण और इस प्रकार होता है:-तुभाणं, तुवाणं, तुमाण, तुहाणं, और जम्हाणं । सूत्र-संख्य ३.१०४ के विधान से उपरोक्त प्रथम श रूपों में से चौथे, पांचवें और छट्टे रूपों में स्थित 'डम' अंश के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'म्ह' और 'म' अंश की आदेश-प्राप्ति हुश्रा करती है; तदनुमार छह आदेश प्राप्त रूपों का निर्माण और इप्त प्रकार होता है:----तुम्ह और नज्मा तुम्हें और तुझ; तुम्हाण और तुझाण । सूत्र-संख्या १-२७ के विधान से पुनः उपरोक्त 'तुम्हाण और तुझाण' में आगम र अनुस्वार की वैकल्पिक रूप से प्राप्ति होने से दो और रूपों का निर्माण होना है। ओकि इस प्रकार हैं:-तुम्हाणं और तुझाणं । इस प्रकार 'युष्माकम्' अथवा 4 के प्राकृत रूपान्तर में कम से नथा वैकल्पिक रूप से आदेश प्राप्त ये कुल से इस रूप जानना । उदाहरण इस प्रकार है:-युष्माकम् अथवा वः धनम् = तु. वो .... ....." इत्यादि २३ वो रूप तुझाणं धणं अर्थात तुम सभी का धन । युष्माकम् संस्कृत पष्ठी बहुवचनान्त त्रिलिंगात्मक सब नाम रूप है । इसके प्राकृत सप 'तु, षो में ... ... ... ... ""से लगाकर तुझाण' तक २३ होते हैं। इनमें से प्रथम दश रूपा में सूत्र-संख्या ३-१०० की प्राप्ति; ११ से १५ ब तक के रूपों में सूत्र संख्या १२७ की प्राप्ति; १६ वें से २१३ तक के रूपों में सूत्र-संख्या ३-१०४ की प्राप्ति और २२ वे तथा २३ वें में सूत्र-संख्या १.२७ की प्राप्ति होकर प्रथम रूप से लगाकर २३ रूप तक की अर्थात् 'तु.को, भे तुम. तुम्भ, तभाण तुषाण, नमाण, सुहाण, उम्हाण, तुबभाणं, तुषाणं, नुमाण, तुहाणं, उम्हाणं, तुम्ह, तुझ तुम्ह, तुम.. तुम्हाण, ज्माण, तुम्हाण और तुज्माणं रूपों की सिद्धि हो जाती है। 'वर्ण' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या 4-40 में की गई है । ३.१०० ।। .. तुमे तुमए तुमाइ तह तए हिना ॥ ३-१०१ ।। सुष्मदो हिना सप्तम्येक वचनेन सहितस्स एतं पञ्चादेशा भवन्ति || तुमे तुमए तुनाई तह तए ठि।। अर्थ:-संस्कृत सर्वनाम शब्द 'युष्मदु' में सप्तमी त्रिभक्ति के एकवचन में मेकृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'किन इ' की संयोजना होने प्राप्त संस्कृत रूप-'त्वयि' के स्थान पर प्राकृत-रूपान्तर में प्रत्यय सहित अवस्था में कम से पांच रूपों की प्रदेश-प्राप्ति होती है। ये पांचों रूप क्रम से इस प्रकार हैं:-- ( स्वयि - ) सुमे, तुमप. तुमाइ, तह, और तए । जवाहरण इस प्रकार है:-त्वयि स्थितम-तुमे, तुमय, नुमाइ, तइ और तए ठिअं अर्थात तुझ में अथवा तुझ पर स्थित है।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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