SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १७८ ] प्राकृत व्याकरण, wee66666666 468 46$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ $$$$$$$ $$$$$ प्रेक्षे संस्कृत आत्मनेपदीय सकर्मक क्रियापद का रूप है । इसका प्राकृत रूप पेच्छामि होता है। इममें सूत्र-संख्या २-७६ से मूल मंस्कृन धातु 'प्रेझ' में स्थित 'र' का लोप; ३-३ से 'क्ष' के स्थान पर 'छ' की प्राप्ति; २८८ से आदेश प्राप्त छ' को द्विध छछ' की प्राप्ति; २.६० से प्राप्त पूर्व 'छ' के स्थान पर 'च' की प्राप्तिः ४-२३६ से प्राप्त प्राकृत धातु पच्छ में हलन्न होने से विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति; ३-५५४ से प्राप्त विवरण प्रत्यय 'सा' को 'श्रा' की प्राप्ति और ३-१४१ से प्राप्तांग परछा' में वतमान काल के तृतीय पुरुष के एकवचन में संस्कृतीय प्रात्मनेपदीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'इ' के स्थान पर प्राकृत में 'मि प्रत्यय की प्राप्ति होकर पंच्छामि क्रियापीय रूप सिद्ध हो जाता है । ३.६३ ।। - भे दि दे ते तइ तए तुम तुमइ तुमए तुमे तुमाइ ट! ॥ ३.६४ ॥ युष्मदप्टा इत्यनेन सह एते एकादशादेशा भवन्ति ॥ में दि दे ते तइ तए तुम तुमइ तुमए तुमे तुमाइ जम्पियं ।। __ अर्थ:-सस्कृत सर्वनाम शब्द 'युष्मद्' के तृतीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'टा-प्रा' को संयोजक होने पर 'भूत हक छौ यात्र' दोनों को स्थान पर प्रादेश-प्राप्त संस्कृत रूप 'स्वया' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से ग्यारह रूपों को आदेश-प्राप्ति हुआ करती है। वे ग्यारह रूप क्रम से इस प्रकार है:- त्वया=) भे, दि. दे, ते, सइ, तए, तुम. तुमई, तुमए, तुमे और तुमाह । उदाहरण इस प्रकार है:-त्वया कथितम - भे, दि. दे. ते, तइ, तर; तुम, तुमइ तुमए, तुमे और तुमाइ जम्पियं अर्थात तेरे द्वारा ( या तुझ से ) कहा गया है । या मंकन तृतीया एकवचनान्त ( त्रिलिंगात्मक) मर्वनाम रूप है । इसके प्राकृत रूप ग्यारह होते हैं । भे. दि, दे, ते, तइ, तए, तुम, तुमह, तुमए, तुमे और तुमाइ । इनमें मूत्र संख्या ३-६४ से संस्कृत रूपत्वया' के स्थान पर क्रम से इन्हीं ग्यारह रूपों की श्रादेश प्राप्ति होकर क्रम से ये ग्यारह कपभ, दि, दे, ते. तह, तप, तुमं, तुमइ, तुमए, तुमे और नुमाइ मिद्ध हो जाते हैं। कथितम् संस्कृत विशेषणात्मक रूप है। इसका पाकन रूप जम्पिन होता है इसमें सूत्र-संख्या ४.२ से मूल संस्कृत धानु 'कथ' के स्थान पर प्राकन में 'जम्प' रूप की आदेशप्रारितः ४-२३६ से प्राप्त प्राकृत-धातु 'जम्प' में हलन्त होने मे विकरण प्रत्यय '' का प्राप्ति, ३-१५६ में प्राप्त विकरण प्रत्यय 'न' के स्थान पर 'ई' की प्रापिन, ४-४४८ मे संस्कृतीय भूतकालीन भाव वाच्य क्रियापदीय प्रत्यय 'त-त' की प्राप्ति; १-१७७ से प्राप्त उक्त प्रत्यक्षात्मक 'न' का लोप, ३-२५ से पूर्वोक्न रीति से प्राप्तांग जम्पिअ' में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकागन्त नपुभकलिग में संस्कृताय प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकत में 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर जम्पिों रूप मिस हो जाता है। ३.६४ ॥
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy