SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित [ १७५ ] 'अद' के स्थान पर सप्तमा विभक्ति के एकान में संदी साप्रामा 'किस' के शान पर श्रादेश-प्राप्त प्रत्यय 'म्मि परे रहने पर वैकल्पिक रूप से ( और क्रम से) 'श्रय और इय' अंग रूपों की प्राप्ति हुआ करती है। उदाहरण इस प्रकार है:--अमुध्मिन् = अम्मि और इम्मि अर्थात उसमें । वैकल्पिक पक्ष का सद्भाव होने से पशान्तर में (अमुष्मिन्-) अमुम्मि रूप का भी सद्भाव होता है। अमुभिन्न संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त पुल्लिग सर्वनाम रूप है । इसके प्राकृत रूप अयम्मि, इम्मि और अमुम्मि होते हैं । इनमें से प्रथम दो रूपों में सूत्र संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'अदस' में स्थित अन्त्य हलन्त ग्यजन 'स' का लोप; ३-८८ से शेष सम्पूर्ण रूप 'अद' के स्थान पर 'बागे सप्तमी एकवचन बोधक प्रत्यय 'मि' का सद्भाव होने से कम से 'श्रय' और 'इय' अंग रूपों की वैकल्पिक रूप से प्रदिश-प्राप्ति तत्पश्चात सूत्र-संख्या ३.११ से सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय "कि-इ' के स्थान पर प्राकृत में 'म्मि' प्रत्यय की प्रादेश-प्राप्ति होकर कम से एवं वैकल्पिक रूप से प्रथम और द्वितीय रूप अयम्मि और इयाम्म सिद्ध हो जाते हैं। कृतीय रूप-(अमुष्मिन् = )अमुम्गि की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-८८ में की गई है । ३-६ ॥ युष्मद स्तं तु तु तुह तुमं सिना ॥ ३-६० ॥ युध्मदः सिना सह तं तु तुवं तुह तुम इत्येते पश्चादेशा भवन्ति ॥ तं तु तुवं तुह तुम दिवो ॥ अर्थ:-संस्कृत मर्वनाम शरद गुरुमद्' के प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय मि',की संयोजना होने पर 'मूल शब्द और प्रत्यय' दोनों के स्थान पर प्रादेश-प्राप्त संस्कृत रूप त्वम्' के स्थान पर प्राकृत में कम से पाँच रूपों को प्रादेश-प्राप्ति हुआ करती है। ये पाँच रूप क्रम से इस प्रकार है:- (त्वम्-) तं, तु, सुर्व, तुह और तुम । उदाहरण इस प्रकार है:-त्वम् दृष्टः - तं, (अथवा) तु' (अथवा तुवं, (अथवा) तुह (अथवा) तुमं विट्ठो अर्थात् तू देखा गया। स्वम् संस्कृत प्रथमा एफवचनान्त (त्रिलिंगात्मक) सर्वनामरूप है । इसके प्राकृत रूप 'तं, तु, तुवं, नुह और तुम' होते हैं । इन पाँचों में सूत्र-संख्या ३-९० से 'स्वम्' के स्थान पर इन पांचों रूपों को क्रम से श्रादेश-प्राप्ति होकर ये पाँच रूप कम से तं, तु, तुषे. तुह और तुम सिद्ध हो जाते हैं। दृष्टः संस्कृत विशेषणात्मक रूप है। इसका प्राकृत रूप दिटो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१२८ से 'अ' के स्थान पर 'इ' की प्रामि; २-३४ से 'ट' के स्थान पर 'ठ' की प्राप्नि; २-८६ से श्रादेश-प्राप्त '' को द्वित्व 'ठ' की प्राप्ति; २६. से आदेश प्राप्त पूर्ण 'ह' के स्थान पर 'ट' की प्राप्ति और ३-२ से प्राप्तांग दिनु' में अकारान्त पुल्लिग में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के के स्थान पर प्राक्त में 'डो-यो' प्रत्यय की चादेश-ग्राग्नि होकर दिए। रूप सिद्ध हो जाता है। ३-६०
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy