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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित ******$46000 [ १५६ ] 1000000866 'ह' की प्राप्ति और ३०१३६ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एकवचन में संस्कृतिीय प्राप्तस्य प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय का प्राप्ति होकर पडिहार रूप सिद्ध हो जाता है । ३-८० ॥ वेद - तदेतदो सम्भ्यां से सिमौ ॥ ३८१ ॥ I इदम् त एतद् इत्येतेषां स्थाने ङस् आम् इत्येताभ्यां सह यथासंख्यं से सिम् इत्यादेश वा भवतः । इदम् । से सीलम् । से गुणा । अस्य शीलं गुणा बेत्यर्थः ॥ सिं उच्छाहो। एषाम् उत्साह इत्यर्थः । तद् | से सौलं । तस्य तस्या वेत्यर्थः ॥ सिं गुणा । तेषा तासां बेत्यर्थः ॥ एतद् । से अहि । एतस्याहितमित्यर्थः ॥ सिं गुणा । सिं सीलं । एतेषां गुणा ! शीलं वेत्यर्थः । पते । इमस्स | इमेसि । इमाय || तस्स | तेर्सि | तारा || एस्स । एएसि । एआय । इदं तदोरामापि से आदेशं कश्विदिच्छति ॥ अर्थ :-- संस्कृत सर्वनाम शब्द बदम्, तद् और एतद्' प्राकृत रूपान्तर में षष्ठी विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'सू' और षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'आम्' की संयोजना होने पर मूल वक्त शब्दों और प्रत्ययों, दोनों के स्थान पर वैकल्पिक रूप से एवं क्रम से 'से' रूप की तथा 'सिम' रूप की आदेश प्राप्ति होती है। विशेष स्पष्टीकरण इस प्रकार है: का प्राकृत आदेश प्राप्त रूप (1) इदम्+ स (२) इदम् + आम् (३) तद् + इस (४) तद् + उस (५) तद् + श्राम् (६) तद् + थाम् (७) एतद् + उ (८) एतद् + आम् " - = R K Oc ( अस्य ) ( एषाम् ) ( तस्य ) (स्त्रीलिंग में तम्बाः) (ताम् ) (स्वीलिंग में तासाम्) ( एतस्य= ) ( एतेषाँ = ) 33 31 P4 . 11 PI " 13 " " از " . ا. 11 " 91 W IP " " " " " 34 " 13 'से' । 'सिं' | 'से' । 'से' | 'सिं' | 'से' । 'से' । सिं' | इस प्रकार शब्द और प्रत्यय दोनों के स्थान पर उक्त रूप से 'से' अथवा 'सिं' रूपों को षष्ठी विभक्ति एकवचन में एवं बहुवचन में कम से तथा वैकल्पिक रूप से प्रदेश-प्राप्ति हुआ करती है। क्वात्मक उदाहरण इस प्रकार है-- 'इदम्' से संबंधितः - अस्य शीलम् से सील अर्थात् इसका शीलधर्म स्व गुणाः = गुणा अर्थात् इसके गुण-धर्म; एषाम् उत्साहः सिं उच्छाहो अर्थात इनका उत्साह | 'सद्' से संबंधितः तस्य शीलम् - से सील अर्थात् उसका शील-धर्म: तस्याः शीलं = से सीलं अर्थात् (त्री) का शील-धर्म; तेषाम् गुणा:-सिं गुणा- उनके गुण-धर्म; तासाम् गुणा: सिं गुणा अर्थात् उन (त्रियों) के गुणधर्म | 'एतद्' से संबंधितः एतस्य वहितम् = से महिषं अर्थात् इसकी हानि अर्थात
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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