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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित - [१५७ ] 000000000000restrost000000000wors000000000000000000000000000000r. इमम् संस्कृत द्वितीया एकवचनान्त पुल्लिग सर्वनाम रूप है । इसके प्राकृत रूप इणं और इमं होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूर-संख्या ३-७८ से सम्पूर्ण संस्कृत रूप 'इमम्' के स्थान पर प्राकृत में 'इणं' रूप की आवेश-प्राप्ति होकर प्रथम रूप इणं सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप इम की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-७२ में की गई है। 'येच्छ' क्रियापद रूप की सिद्धि सत्र-संख्या १३ में की गई है।३-७८ ।। क्लीबे स्यमेदमिणमो च ॥ ३-७६ ॥ नमक लिङ्ग वर्तमानस्येदमः स्यम्भ्यां सहितस्य इदम् हणमो इणम् च नित्यमादेशा भवन्ति ॥ इदं इमामो इर्ण धणं चिट्ठा पेच्छ वा || अर्थ:-संस्कृत सर्वनाम नपुसकलिंग शब्द 'इदम्' के प्राकृत रूपान्तर में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में 'सि' प्रत्यय प्राप्त होने पर और द्वितीया विभक्ति के एकवचन में 'अम्' प्रत्यय प्राप्त होने पर मूल शब्द 'इदम्' और मुक्त प्रत्यय, इन दोनों के स्थान पर नित्यमेव कम से 'इदम्, इणमो और इणं' ये तीन श्रादेश रूप हुश्रा करते हैं । यो प्रथमा विभक्ति और द्वितीया विभक्ति दोनों के एकवचन में समान रूप से 'इदम्' के नपुसकलिंग में उक्त तीन तीन रूप होते हैं । ये नित्यमेव होते हैं; वैकल्पिक रूप से नहीं। उदाहरण इस प्रकार है:-इदं अथवा इणमो अथवा इणं धर्ण चिट्ठइ = इदम धनम् तिष्ठति अर्थात् यह धन विद्यमान है। इदं अथवा इणमो अथवा इणं धनम् पश्य अर्थात इस धन को देखो । उक्त उदाहरण क्रम से प्रथमा विभक्ति और द्वितीया विभक्ति के एकवचन के द्योतक हैं। इडम् संस्कृत प्रथमा-द्वितीया एकवचनान्त नपुंसकलिंग सर्वनाम रूप है । इसके (दोनों विभक्तियों में भमान रूप से) प्राकृत रूप इदं, इणमो और इणं होते हैं। इन तीनों रूपों में सूत्र-संख्या ३-७५ से मूल संस्कृत शब्द 'इम्' और प्रथमा द्वितीया के एकवचन में कम से प्राप्तव्य संस्कृतीय प्रत्यय 'सि' और 'अम्' सहित दोनों के स्थान पर कम सं नित्यमेव 'इदं, इणमो और इणं' रूपों की (प्रत्यय साहत) आदेश-प्राप्ति होकर ये तीनों रूप इदं, इणमो और इण सिद्ध हो जाते हैं। 'धणं रूप. की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-५० में की गई है। 'चिट्ठइ' क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १.१९९ में की गई है। 'पेच्छ' क्रियापद रूप की सिद्धि सत्र-संख्या १-१३ में की गई है । ३-७६ ।। किमः किं ॥ ३.८० ।। किमः क्लीवे वर्तमानस्य स्यम्म्यां सह किं भवति । किं कुलं तुह । किं किं ते पडिहाइ ।।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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