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________________ [ १५२ ] $44454440 * प्राकृत व्याकरण * ************* द्वितीय रूप 'मी' की सिद्धि सूत्र संख्या ३७२ में की गई है। कृत कार्यः संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त पुल्लिंग विशेष रूप है इसका प्राकृत रूप कय-कज होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१२६ से आदि स्वर 'ऋ' के स्थान पर 'अ' को प्राप्तिः १२७७ से 'तू' का जोपः १ १८० से लीप हुए 'त' के पश्चात् शेष रहे 'अ' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति २४ से दीर्घ स्वर 'थ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति २-२४ से संयुक्त व्यञ्जन 'र्य' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति २-८६ से प्रदेश प्राप्त 'ज' को द्वित्व 'न' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृताय प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'दोन प्रां' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कय कज्जो रूप सिद्ध हो जाता है। इयम संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त स्त्रीलिंग सर्वनाम का रूप है। इसके प्राकृत रूप मित्र और इमा होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या ३७३ से सम्पूर्ण संस्कृत रूप 'इयम्' के स्थान पर प्राकृत में 'मित्रा' रूप की प्रदेश-प्राप्ति वैकल्पिक रूप से होकर प्रथम रूप 'इशंषा' सिद्ध हो जाता है । द्वितीय रूप 'हम' की सिद्धि सूत्र संख्या ३-७१ में की गई है। afree gear संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त स्त्रीलिंग संज्ञा रूप है। इसका प्राकृत रूप वाणि धूम्रा होता है। इसमें सूत्र संख्या २-०७ 'हलन्त व्यञ्जन 'क' का लो१; १-१७० से 'य्' का लोन; २-१२६ से सम्पूर्ण शब्द 'दुहिता' के स्थान पर प्राकृत में धूआ रूप की देश-प्राप्ति; ४-४४८ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रायसिस' की अमि और (-११ से प्राप्त हलन्त प्रत्यय 'सू' का लोप होकर वाणि-भूआ रूप सिद्ध हो जाता है । ३-७३ ।। रिंस - स्सयोरत् ॥ ३-७४ ॥ इदमः हिंसस्स इत्येतयोः परयोरद् भवति वा ॥ असि पत्रे इमादेोपि । इमसि । इमस्स । बहुलाधिकारादन्यत्रापि भवति । एहि । एतु आदि । एभिः । एषु । श्रभिरित्यर्थः ॥ अर्थ:-- संस्कृत सर्वनाम शब्द 'इम' के प्राकृत रूपान्तर में समीति के एकवचन में मध्य प्राकृतीय प्रत्यय हिंस' और षष्ठी विभक्ति के एकवचन में प्रातव्य प्राकृतीय प्रत्यय 'रस' के प्राप्त होने पर सम्पूर्ण सर्वनाम इदम्' के स्थान पर प्राकृत में 'अ' अंग रूप की वैकल्पिक रूप से प्राप्त हुआ करती है । जैसे:- 'रिस' प्रत्यय का उदाहरण- अस्मिन = अति अर्थात् इसमें और 'स' प्रत्यय का उदाहरण---अस्व=अरस अर्थात् इसका वैकल्पिक पक्ष का उल्लेख होने से पक्षान्तर में सूत्र संख्या ३-७५ के विधान से 'इम्' के स्थान पर 'इम' अंग रूप की प्राप्ति भी होती है। जैसे:--अस्मिन = इमसि अर्थात् इसमें और अस्य- इमस अर्थात इसका बहुलाधिकार से 'बम' के स्थान पर पुल्लिंग में 'ए' अंग रूप की
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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