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________________ [ १५. ] *प्राकृत व्याकरण * ++++++49499$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ 'क' सर्वनाम रूप की सिद्धि सूत्र संख्या 1 में की गई है। कान संस्कन द्वितीया यहुवचनान्त पुल्लिा सर्वनाम रूप है । इसका प्राकृत रूप के होता है । इस में सूत्र-संख्या ३-७१ से मूल संस्कृत सर्वनाम शब्द 'किम्' के स्थान पर प्राकन में 'क' अंग रूप की प्रादेश-प्राप्ति; ३-१४ से प्राप्ताः 'क' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर 'पागे द्वितीया बहुवचन बोधक प्रत्यय का सद्भाव हाने से' 'ए' की प्राप्ति और ३-४ से प्राप्तांग 'के' में द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय भाप्तव्य प्रत्यय 'जम' का प्राफत में लोप होकर 'के' रूप सिद्ध हो जाता है। 'कण' रूप की मिशि सूत्र-संख्या १४. में की गई है। 'कत्थ' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या २.१? में की गई है। कुतः संस्कृत (अव्ययात्मक) रूप है। इसके प्राकृत सप की, कत्तो और कदा होते हैं । इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या ३-७१ से मूच सस्तन सवनाम शब्द 'किम्' के स्थान पर प्राकृत में 'क' अंग रूप की आदेश प्राप्ति; १-१७७ से 'न्' का लोप और १-३७ से लोप हुए 'त' के पश्चात् शेष रहे हुए विसर्ग के स्थान पर 'श्रो' की प्राप्ति होकर प्रथम रूप को सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप 'पत्तो' और तनीय रूप 'कदो' की मिचि सूत्र संख्या २-१६० में की गई है । ३.११॥ इदम इमः ॥३-७२ ॥ इदमः म्यादौ परे हम आदेशो भवति । इमो । इमे । इमं । इमे । इमेण ॥ स्त्रियामपि । इमा । . अर्थ:--संस्कन मर्वनाम शब्द इदम्' के प्राकृत रूपान्तर में विभक्ति वोधक प्रत्यय परे रहने पा 'इमअंग रूप आदेश की प्राप्ति होती है । जैसे:-अयम = इमो; इमे = इमे; इमम् इम; इमान - इम अनेन-इमेण इत्यादि । वालिंग-अवस्था में भी 'इरम' शब्द के स्थान पर प्राकृत में 'इमा' अगर आदेश की प्राप्ति होती है। जैसे:-इयम् = इमा इत्यादि। ___ अयम् संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त पुल्लिग मर्वनाम रूप है । इसका प्राकृत रूप इमो होता है। इसमें सूत्र संख्या ३.७२ से मूल सं कृत सर्वनाम शब्द 'इदम्' के स्थान पर प्राकृत में 'इम' अंग रूप को श्रादेश प्रारित और ३-२ से प्राप्तांग 'इम' में प्रथमा विमत के एकवचन में पुल्लिा में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यत्र 'सि के स्थान पर प्राकृत में 'डो-प्रो' प्रत्यय को आदेश-प्राप्ति होकर इमों रूप मिद्ध हो जाता है। हमे संस्कृत प्रथमा यहुवचनान्त पुल्लिग सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप इमे होता है। इसमें 'इम' मंगरुप की प्राप्ति उपरोक्त (३-७२ के) विधान के अनुमार; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-५८
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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