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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * .ooordskriskosekasdressrotesterodrowseredaveideoxxxsexstoerseos00* द्वितीय रूप-( यस्मात = ) जाओ में 'ज' अंग की प्राप्ति उपरोक्त साधनिका के अनुसार, तत्पश्चात सूत्र-संख्या ३.१२. से प्राप्तांग 'ज' में स्थित अन्त्य हस्व स्वर 'अ' के स्थान पर दीर्घ स्वर 'या' की प्राप्ति और :-- से प्राप्तांग 'जा' में उपरोक्त रीति से पञ्चमी विभक्ति के एक वचन में श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय-रूप जाभी भी सिद्ध हो जाता है । तस्मान संस्कृत पञ्चमी एक वचनान्त पुल्लिग के सर्वनाम का रूप है । इसके प्राकृत रूप तम्हा और ताओ होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'तद्' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'दु' का लोप और ३-६६ से प्राप्तांग 'न' में पञ्चमी विभक्ति के एक वचन में संस्कृत प्रत्यय 'कमि = श्रम' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'म्हा' प्रत्यय की ( आदेश ) प्राग्नि होकर प्रथम रूप तम्हा मिद हो जाना है। द्वितीय रूप- तस्मात ) तानी में 'स' अंग की प्राप्ति उपरोक सानिका के अनुसार; तत्पश्चात सूत्र-संख्या ३-१२ से प्राप्तांग 'त' में स्थित अन्त्य हस्व स्वर 'अ' के स्थान पर दोष स्वर 'या' की प्रानि और ३-८ से प्रातांग 'ता' में उपरोस्त रीति से पवमी विमक्ति के एकवचन में 'दोश्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूपताओ भी सिद्ध हो जाता है । ३-६६ ॥ तदो डोः ॥ ३.६७ ॥ तदः परस्य उसेडों इत्यादेशो वा भवति ।। तो । तम्हा ॥ अर्थ:-संस्कृत मर्वनाम 'तद्' के प्राकृत रूपान्तर 'त' में पञ्चमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्राध्य प्रत्यय 'मि = अस' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'डो' प्रत्यय की श्रादेशप्राप्ति हुश्रा करनी है। प्राच्य प्रत्यय 'डो में स्थित '' इसंज्ञक है। तदनुसार उक्त सर्वनाम 'त' में स्थित अन्त्य द्वार सर 'अ' की इस्मज्ञा होकर इस 'अ' घर का लोप हो जाता है; एवं तत्पश्चात शेांग हलन्त त्' सर्वनाम में उक्त प्रत्यय 'श्रो' की संयोजना होती हैं । जैसे:-तम्मात ती । वैकल्पिक पक्ष का सद्भाव होने से पक्षान्तर में सत्र संख्या ३.६३ के विधान से ( तस्मात = ) सम्हा रूप की प्राप्ति होती है। 'सम्हा' रूप में भी वैकल्पिक पक्ष का पदभाव है अतएव सत्र-संख्या ३-८ के विधान से ( तम्माता, 'तत्तो, ताओ, तार, ताहि, ताहिन्तो और ता' रूपों का भी सद्भाव जानना चाहिये। तस्मात् संस्कृत पञ्चमी एकवचनान्त पुल्लिंग के सर्वनाम का रूप है । इसके प्राकृत रूप 'नो' और 'तम्हा' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या १.११ से मूल संस्कृत-शब्द 'तद्' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'द्' का लोप और, ३-६७ से प्राप्तांग 'न' में परमो विक्ति के एकवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'सि-प्रस्' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'डो-यो' प्रत्यय की (श्रादेश) प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'तो' सिद्ध हो जाता है।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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