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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित द्वितीय रूप-: कम्या = ) कार में सूत्र संख्या ३ २६ से उपरोक्त रोनि से प्राप्तांग 'का' में षष्ठी विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'अस्' के स्थान पर प्राकृत में 'ए' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप का सिद्ध हो जाता है । 'धर्ण रूप की सिद्धि सूत्र संख्या ६-५० में की गई है। तस्याः संस्कृत पक्षी एकवचनान्त स्त्रीलिंग के सवनाम का रूप है। इसके प्राकृत रूप तास और ताए होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'लदू' में स्थित अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'द' का लोप ३-३२ और २-४ के निर्देश से 'त' में पुल्लिंग से स्त्रीलिंग के निर्माण हेतु '' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-३३ की वृति से 'ता' में षष्ठी विभक्ति के एक वचन में संस्कृतिीय प्रत्यय 'स' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'डास = स' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप तास सिद्ध हो जाता है। [ १३७ ] **❖❖❖❖❖0600066�++664 900430 द्वितीय रूप ( तस्या = ) ताए में सूत्र संख्या ३- २६ से उपरोक्त रीति से 'ता' में षष्ठी विभक्ति के एक वचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'कम् = अम्' के स्थान पर प्राकृत में 'ए' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप ताए सिद्ध हो जाता है । ३-६३ ईदभ्यः सा से || ३-६४ ॥ किमादिभ्य ईदन्तेभ्यः परस्य सः स्थाने स्सा से इत्यादेशो वा भवतः । टा-इस्-दो रादिदेश तु ङसे (३-२६ ) इत्यस्यापवादः । पक्ष श्रदादयोपि || किस्सा | कौसे । की । कीथा । की । की || जिल्ला । जिसे । जीश्र । जीश्रा । जीड़। जीए ॥ तिस्सा । तीसे । 1 ती | तीचा । ती । तीए ॥ I अर्थ:- संस्कृत सर्वनाम 'किमू' यदू तद् के प्राकृतीय ईकारान्त स्त्रीलिंग रूप-की-जी-ती' में विभक्ति एकवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'उस्स' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से एवं क्रम से 'रमा' और 'से' प्रत्ययों की प्राप्ति हुआ करती है। इसी तृतीय पाद के उन्नतोसवें सूत्र में यह विधान निश्चित किया गया है कि 'संस्कृतीय षष्ठी विभक्ति के एकवचन में प्रत्यय 'ङस्=अस्' के स्थान पर प्राकृत में स्त्रीलिंग बाते शब्दों में 'अतु = श्र; श्रत = था; इत् = इ और एत् "ए' प्रत्ययों की कम से प्राप्ति होती है। तदनुसार उक्त सूत्र संख्या ३ २६ के प्रति इस सूत्र (३-६४ ) को अपवाद रूप सूत्र समझना चाहिये। इस प्रकार इस अपवाद रूप स्थिति को ध्यान में रखकर ही मन्थकर्ता ने 'वैकल्पिक स्थिति का उल्लेख किया है; तदनुसार वैकल्पिक स्थिति का सद्भाव होने से पक्षान्तर में सूत्र-संख्या ३२६ के आदेश से स्त्रीलिंग वाले सर्वनाम रूप 'की- जी-ती' में षष्ठी विभक्ति के एकवचन में ( प्राकृत में ) 'अत् श्रतश्राः इत् = इ और पत् = ए' प्रत्ययों का भी
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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