SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १३४ ] * प्रात व्याकरण * .orosorrorestmetosssssssssetrorecorrrrrrrorestrono60646400*60000oksator तासाम् संस्कृन पष्ठी बहुवचनान्त स्लोजिंग के मर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप तेमि होता. है। इसमें सूत्र-संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'तद्' म स्थित्त अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'द का लोप; ३.३२ और २-४ के विधान से 'त' मे पुल्लिगत्व से स्त्रीजिंगत्व के निर्माणार्थ 'या' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-६१ से 'ना' में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'श्राम्के स्थान पर प्राकृत में 'डेसिं' प्रत्यय को प्रारित, प्राप्त प्रत्यय 'डेमि में स्थित्त 'ड' इत्संज्ञक होने से प्राप्तांग 'ता' में स्थित अन्त्य स्वर 'या' की इनमज्ञा होकर इस 'श्रा' का लोप एवं हलन्त 'त' में उपरोक्त 'एनि" प्रत्यय की योजना होकर (पुल्लिग रूप के समान प्रतीत होने वाला यह स्त्रीलिंग रूप) तेसिं सिद्ध हो जाता है। ३-६१ ।। कितद्भ्यां डासः ॥ ३-६२ ॥ किंतझ्या परस्यामः स्थाने डास इत्यादेशो का भवति ॥ कास । तास । पक्षे । केसि । तेसि ।। ___अर्थ:-संस्कुन सर्वनाम 'किम्' के प्राकृत रूपान्तर 'क' में और संस्कृत मर्वनाम 'तद्' के प्राकृत रूपान्तर 'त' में पष्टी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'प्राम' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'डाम' (प्रत्यय) की प्राप्ति हुश्रा करती है । प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'डास' (प्रत्यय) की प्राप्ति हुथा करती है । प्राकृत में प्राप्त प्रत्यय 'डाप्स' में स्थित 'लु' इत्संशक है, तदनुसार प्राकृत मर्वनाम रुप "क" और "त' में स्थित अन्त्य स्वर "अ' की इत्संज्ञा दोने से इस अन्त्य स्वर "अ" का लोप हो जाता है एवं सत्पश्चात् शेष रहे हुए हलन्त मनाम रूप "क" और "त्" थंग में उक्त षष्ठी के बहुवचन का प्रत्यय "डास-पास' को संयोजना होती है। जैसे:-वेषाम् कास और तपाम्-तास धैकल्पिक पह होने से (केपाम् ) बेसि और (तेषाम-) तसिं रूप भी बनते हैं। केषाम् संस्कृत पधी बहुवचनान्त पुल्लिग के सर्वनाम का रूप है इस के प्राकृत रूप कास और केमि होते हैं। इन में से प्रथम रूप में सुत्र संख्या ३-७१ मे मूल संस्कृत शब्द ''किम्" के स्थान पर प्राकृत में "क" रूप की प्राप्ति, ७-६२ से प्राकृती "क" में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृतीय प्रत्यय "श्राम्"" के स्थान पर प्राकृन में 'बोस' प्रत्यय की प्रामि, प्रान प्रत्यय "हास्" में स्थित "ड" इत्संजक होने से "क" में स्थित अन्स्य स्वर "अ" को इत्संज्ञा होकर इस "अ" का लोप एवं हलन्त “क' में उपरोक्त "श्रास" प्रत्यय की संयोजना होकर प्रथम रुप कास सिद्ध हो जाता है। कास की सिद्धि, सूत्र मख्या ३-१ में की गई है। तेषाम संस्कृत पष्ठी बहुवचनान्त पुल्लिग सर्वनाम का रूप है । इस के प्राकृत रूप तास और तसिं होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द "त" में स्थित अन्य
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy