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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित - [ १२३ ] Roorkers 00000NRNMDM अप्पणिआ रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-१४ में की गई है। 'य' अव्यय की सिद्धि सूत्र-संख्या १.१८४ में की गई है। 'विअहिड' (अथवा प्रथमान्त एकवचन रूप विडी) को सिद्धि सूत्र-संख्या-१६ में की गई है। रवानिता संस्कृत विशेषणात्मक रूप। इस कृत २ लामिका होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-२५८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति और १-१७७ से 'तू' का लोप होकर खाणि रूप सिद्ध हो जाता है। 'अप्पणइमा' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-१४ में की गई है। 'अप्पाणण' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-५६ में की गई है। ३-५७ ॥ ___ अतः सर्वादे . जसः ॥ ३-५८ ॥सर्वादेरदन्तात् परस्य जसः डित् ए इत्यादेशो भवति ॥ सव्वे । अन्ने । जे । ते । के । एक्के । कपरे । इयरे । एए । अत इति किम् । सम्बाश्री रिद्धीओ ॥ जस इति किम् सव्यस्स ।। अर्थ:- (सर्वसम्व) श्रादि अकारान्त मर्वनामों के प्राकृत रूपान्तर में प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में संस्कृताय प्रत्यय 'जस' के स्थान पर 'डे' प्रत्यय की (आदेश) प्राप्ति होती है। प्राप्त प्रत्यय 'डे' में 'इ' इत्संज्ञक है; तदनुसार अकारान्त सर्वनामों के अंग रूप में स्थित अन्त्य 'अ' स्वर को इसंझा होकर उक्त अन्त्य 'अ' का लोप हो जाता है एवं तत्पश्चात प्राप्तांग हलन्त रूप में उक्त प्रथमा बहुवचन (बोधक) प्रत्यय 'ए' को संयोजना होती है । उदाहरण इस प्रकार हैं:-सर्वसम्वं । अन्ये = अन्ने । ये = जे । तेन्त । के - कं ! एक-एकके । कतरे कयरे । इतरे-इअर और ऐत=५९; इत्यादि। मदन;-मूल सूत्र में 'अकारान्त' ऐसा विशेषण क्यों दिया गया है ? उत्तर:--सर्वनाम 'अकारान्त होते हैं एवं प्राकारान्त मा होते हैं; तदनुसार प्रथमा बहुवचन में प्राप्तव्य 'जस' प्रत्यय के स्थान पर 'डे' प्रत्यय की प्राप्ति केवल अकारान्त सर्वनामों में ही होती हैं; श्राकारान्त सर्वनामों में नहीं; इस विधि-विधान को ध्यक्त करने के लिये तथा संपुष्ट करने के लिये ही 'अकारान्त' ऐमा विशेषण मूल सूत्र में संयोजित किया गया है । जैसेः सर्वाः अद्धयः-सम्वानो रिद्धीश्रीः इस उदाहरण में प्रयुक्त मन्त्रा' सर्वनाम अकाराम्त नहीं होकर श्राकारान्त है; तदनुसार इसमें अधिकृत सूत्र-संख्या ३-५८ के विधान से प्रथमा बहुवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'जस्' के स्थान पर 'टे =ए' प्रत्यय की संबोजना नहीं होती है । 'जस' के स्थान पर ढेए प्रत्यय की संयोजना केवल अकारान्त सर्वनामों में ही होती है; अन्य में नहीं; इस सिद्धान्त को प्रकट करने के लिये ही मूल सूत्र में 'अकारान्त' विशेषण का प्रयोग करना पड़ा है।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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