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________________ प्राकृत व्याकरण * narinosistectivenirvindainstreetootoorror+0000000000000000000000 आत्मानः संस्कृत प्रथमान्त बहुवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप अप्पाणा होता है। इसमें 'आत्मन् - अपाण' अग की प्राप्ति उपरोक्त विधि अनुमार; तत्पश्चात सूत्र संख्या ३-१२ से प्राप्तांग 'अप्पाण' में स्थित अन्त्य 'अ' को 'भागे प्रथमा-बहुवचन-बोधक प्रत्यय की स्थिति होने से' "श्रा' की प्राप्ति एवं ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'जस्' का प्राकृत में लोप होकर-अप्पाणा रूप सिद्ध हो जाता है । आत्मानमः संस्कृत द्वितीयान्त एकवचन का रूप है। इसका प्राकुन रूप अप्पाणं होता है। इसमें 'आत्मन् = अपाण' अंग की प्राप्ति उपरोक्त विधि अनुसार, तत्पश्चात सूत्र-संख्या ३.५ से द्वितीया विभक्ति के एकवचम में अकारान्त पुल्लिग में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'अम-म्' के समान ही प्राकृत में भी 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १.२३ से 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर अप्पाणे रूप सिद्ध हो जाता है। - आत्मनः संस्कृत द्वितोयान्त बहुवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप प्रापाणे होता है । इसमें 'धात्मन्-चप्पाण' अंग की प्राप्ति उपरोक्त विधि-अनुसार; तत्पश्चात सूत्र-संख्या ३-१४ से प्राप्तांग 'अप्पाण' में स्थित अन्त्य 'अ' को 'भागे द्वितीया-बहुवचन-प्रत्यय की स्थिति होने से 'ए' की प्राप्ति एवं ३-४ से द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'शस्' का प्राकृत में लोप होकर अप्याणे रूप सिब हो जाता है। आत्ममा संस्कृत तृतीयान्त एकवचन का रूप है । इसका प्राकृत रूप-अप्पाण्ण होता है । इसमें 'मात्मन=अप्पाण' अंग की प्राप्ति-उपरोक्त विधि अनुसार, तत्पश्चात मूत्र-संख्या ३-१४ से प्राप्तांग 'अप्पाण' में स्थित अन्त्य 'अ' को 'आगे तृतीया-एक-वचन-बोधक प्राय का मदभाव होने से' 'प' की प्राप्ति और ३-६ से तृतीया विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग संस्कृनीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में ''प्रत्यय की प्राप्ति होकर अप्याणणरूप सिद्ध हो जाता है। भास्मभिः संस्कृत तृतीयान्त बहुवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप-अप्पाणेहि होता है। इसमें 'आत्मन = श्रापाण' अंग की प्राप्ति उपरोक्त विधि अनुसार, तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-१५ से प्राप्तांग 'अप्पाण' में स्थित अन्त्य 'अ' के आगे तृतीया बहुवचन बोधक प्रत्यय का समाव होने से' 'ए' की प्राप्ति और ३-७ से तृतीया विमक्ति के बहुवचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृतीय प्रत्यय 'भिम' के स्थान पर प्राकृत में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अप्माणहि रूप सिद्ध हो जाता है। ___आत्मनः संस्कृत पञ्चम्यन्त एकवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप अप्पाणारी होता है। इसमें 'प्रात्मक-अप्पाण' अंग की प्राप्ति उपरोक्त विधि-अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३.१२ से प्राप्तांग 'अप्पाण' में स्थित अन्त्य 'अ' के 'आगे पंचमी-एकवचन-बोधक प्रत्यय का सदुभाव होने से 'आ' की प्राप्ति और ३-८ से पञ्चमी विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृतीच प्रत्यय 'सि-अस्' के स्थान पर प्राकृत में 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अप्पामाओ रूप सिद्ध हो जाता है।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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