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________________ ॥ ॐ अर्हत्-सिद्धेभ्यो नमः ॥ आचार्य हेमचन्द्र रचितम् ( प्रियोदय हिन्दी व्याख्यया समलंकृतम् ) प्राकृत - व्याकरणम् तृतीय - पाद वीस्यात् स्यादेवस्ये स्वरे मोत्रा ॥ ३-१ ॥ सत्पात्रस्य स्यादेः स्थाने स्वरादौ वीप्सार्थे पदे परे मो वा भवति ॥ एकैकम् । एकमेक्क' | एकमेक्केण । अङ्ग अङ्गभङ्गम्मि । पते । एक कमित्यादि ॥ अर्थ:- जहाँ तात्पर्य विशेष के कारण से एक ही शब्द का दो बार लगातार रूप से उच्चारण किया जाता है, तो ऐसी पुनरुक्ति को 'बीमा' कहते हैं। ऐसे 'वोप्सा' अर्थक पद में यदि प्रारंभ में स्वर रहा हुआ हो तो वीसा श्रर्थक पद में रहे हुए चिभक्ति वाचक सि' आदि प्रत्थयों के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'म्' आदेश की प्राप्ति हुआ करती हैं । वैकल्पिक पक्ष होने से जहाँ विभक्ति-वाचक प्रत्ययों के स्थान पर 'म्' आदेश को प्राप्ति नहीं होगी; वहाँ पर विभक्तिवाचक प्रत्ययों का लोप हो जायगा । उदाहरण इस प्रकार है:- एकैकम्= एकमेकं श्रथवा एकम् ॥ एकेन एकेन एकमेकेण ॥ ( पक्षान्तर में - एकेकण) । अङ्ग अङ्ग धङ्गमङ्गमि । पक्षान्तर में श्रङ्गाङ्गम्म होगा । I H एकैकम:-- संस्कृत विशेषण रूप है। इसके प्राकृत रूप एकमेकं और एक कां होते हैं। इनमें सूत्रसंख्या -२-६८ से दोनों 'क' वर्णों के स्थान पर हिल 'क' वर्ण की प्राप्तिः ३-१ से वीप्सा अर्थक पद होने पिक रूप से प्रथम रूप में संस्कृतीथ लुप्त विभक्ति वाचक प्रत्यय के स्थान पर 'म' आदेश की
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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