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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * worrespressorrorensterstoodoosedronsetroreovotestostrosarorosorison हे राजन् ! संस्कृत संबोधनात्मक सघन रूप है। इसका शौरसेनी रूप हे पर्य होता है। . इसमें सूत्र-संख्या १-७७ से 'ज्' का लोप; १-१८० से लोप हुए 'ज' के पश्चात् शेष रहे हुए 'अ' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति; ४-२६४ से संबोधन के एकवचन में संस्कृतीय प्रत्यय 'सि' के कारण से शौरसेनी में प्राप्तांग गयन्' के अन्त्य 'न्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर शौरसनी रूप हे राय। मिद्ध हो जाता है। हे आत्मन् ! संस्कृत संबोधनात्मक एकवचन का रूप है । इसका शौरसेनी रूप हे अप्पं ! होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-८४ से दीघ स्वर 'आ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति २-५१ से संयुक्त व्यजन 'स्म' के स्थान पर 'प' को प्राप्त; २-८६ से प्राप्त १ को द्वित्व 'आप' की प्राप्ति ५-२६४ से संबोधन के एकवचन में शौरसेनी में प्राप्तोंग 'अप्पन ' में स्थित अन्त्य 'न' के स्थान पर अनुस्वार का प्राप्ति होकर हे अप्पं रूप सिद्ध हो जाता है। हे आत्मन् ! संस्कृत संबोधनात्मक एकवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप हे अप्प ! होता है। इसमें 'अप्प' अंग की प्राप्ति उपरोक्त विधि-अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र संख्या १-११ से हलन्त 'न' का लोप और ३-३८ से संबोधन के एकवचन में संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' का प्राकृत में वैकल्पिक रूप से प्रभाव होकर प्राकृतीय-संबोधनात्मक एकवचन रूप हे अप्प ! सिद्ध हो जाता है । ३-४६ || जस-शस्-डसिङसां णो ॥३-५०॥ राजन् शब्दात् परेषामेषां णो इत्यादेशो वा भवति ॥ जस् । रायाणो चिट्ठन्ति । पक्षे । राया ।। शस् । रायाणो पेच्छ । पक्षे । राया. राए | उसि । राइणो रगणी आगी । पक्षे । रायाो । रायाउ । रायाहि । रायाहिन्तो । राया । उस् । राइणो रगणो धणं । पक्षे । रायस्स ॥ अर्थ:-संस्कृत शब्न राजन' के प्राकृत रूपान्तर में प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में प्रत्यय “जस्' के स्थान पर; द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में प्रत्यय 'शस के स्थान पर; पंचमी विभक्ति के एकवचन में प्रत्यय 'एसि' के स्थान पर और षष्ठी विभक्ति के एकवचन में प्रत्यय 'अस्' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'गो' प्रत्यय की प्राप्ति हुआ करती है । जैसे:--'जस' प्रत्यय का उदाहरण- राजानः सिष्ठन्तिमरायाणो अथवा राया चिटुन्मि । 'शस्' प्रत्यय का उदाहरणः रामः पश्यायाणो अथवा गया अथवा राय पेन्छ, अर्थात् राजाओं को देखो। असि' प्रत्यय का उदाहरणः- राज्ञः आगतः = राइणो रणो-अागओ; पक्षान्तर में मंच रूप होते हैं:- गयाओ; रायाज; रायाहि; रायाहिन्तो और राया मागश्री अर्थात् राजा से भाया हुआ है । 'स' प्रत्यय का अवाहरा-राशः धनम-राइणो-रएणी
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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