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________________ [ ६३ प्रथमा विभक्ति के बहुबचन बोधक प्रत्यय की प्राप्ति होने से 'आ' की प्राप्ति और ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृतिीय प्रत्यय 'जम्' का प्राकृत में लोप होकर जामायरा रूप सिद्ध हो जाता है । 2000866466. * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित •*$*$*04660000000666666666666666/ जामातरम् संस्कृत द्वितीयान्त एकवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप जामायरं होता है। इसमें 'जामायर' अंग की प्राप्ति उपरोक्त साधनिका के समान तत्पश्चात् सूत्र संख्या ३-५ से द्वितीया भक्ति के एकवचन में अकारान्त पुहिल में संस्कृतिीय प्रस्यय 'श्रम् = म्' के समान ही प्राकृत में मी 'मू' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति हो कर जामायरं रूप सिद्ध हो जाता है। जामातून संस्कृत द्वितीयान्त बहुवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप जामायो होता है। इसमें 'जामायर' अंग की प्राप्ति उपरोक्त सावनिका के समान नत्पश्चात सूत्र संख्या ३०१४ से प्राप्तांग 'जामायर' में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर 'आगे द्वितीया विभक्ति के बहुत्रवन प्रत्यय की प्राप्ति होने से' 'ए' की प्राप्ति; और ३-४ से द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृतीय प्रत्यय 'शस्' का प्राकृत में लोप होकर जामायरे रूप सिद्ध हो जाता है । जामात्रा संस्कृत तृतीयान्त एकवचन का रूप हैं। इसका प्राकृत रूप जामायरेग होता है। इसमें 'जामायर' अंग की प्राप्ति उपरोक्त साधनिका के ममोनः तत्पश्चात् सूत्र संख्या ३-९४ से प्राप्तांग 'जामायर' में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर 'धागे तृतीया विभक्ति के एकवचन प्रत्यय की प्राप्ति होने से' 'ए' की प्राप्ति और ३-३ से तृतीया विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृतिीय प्रत्यय 'टा=ओ' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर जामायरेण रूप सिद्ध हो जाता है। जामातृभ: संस्कृत तृतीयान्त बहुवचन का रूप है। इसका प्राकृत जामारेहिं होता है। इसमें 'जामायर' अंग की प्राप्ति उपरोक्त साधनिका के मनानः तत्पश्वात् शेष साधनेका सूत्र संख्या ३-१५ तथा ३-७ से उपरोक्त 'पिअरेहिं' के समान ही होकर जामायरेहिं रूप सिद्ध हो जाता है । भ्रातरः संस्कृत प्रथमान्त बहुवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप भायरा होता है। इसमें सूत्र संख्या २७६ से मूल संस्कृत शब्द भ्रातृ में स्थित 'र्' का लोप; १-१७७ से 'त्' का लोप ३-४७ से लोप हुए 'तू' के पश्चात शेष रहे हुए 'ऋ' के स्थान पर 'अर' आदेश की प्राप्ति; २-६८० से आदेश प्राप्त 'अर' में स्थित 'अ' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति; ३-१२ से प्राप्तांग 'भायर' में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर ' आगे प्रथमा विभक्ति के बहुवचन बोधक प्रत्यय की प्राप्ति होने से 'आ' की प्राप्ति और ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृतिीय प्रत्यय 'जस' का प्राकृत में लोप होकर भायरा रूप सिद्ध हो जाता है ।
SR No.090367
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages678
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size18 MB
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