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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * 'म्' का अनुस्वार होकर भण्डलग्गरूप सिद्ध होता है । जब पुल्लिगत्व होता है तब ३-३ से पयमा एक वचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'भो' प्राप्त होकर मण्डग्गी कप सिद्ध हो जाता है। कररुहः सस्कृत शन है। इसके शकृत रूप करहह और करमही होते हैं। इनमें सूत्र सल्या १-३४ से विकल्प रूप से नपुसकत्व की प्राप्ति होने से ३.२५ प्रथमा एक वचर में 'हि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' को Ria; "-३ प्राय ' का अनुस्वार होकर करसहं रूप सिद्ध हो जाता है । जब पुस्लिाव होता है; तर ३-२ से प्रयमा एक वचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'यो' प्राप्त होकर करतहो रूप सिद्ध हो जाता है । वृक्षाः संस्कृत शब्द है । इसके प्राकृत रूप क्याई और नक्षा होते हैं। इसमें सूत्र संख्या २-१२, से पक्ष का आदेश 'रुख' हो जाता है; १.३४ से विकल्प रूप से नपुसकत्व की प्राप्ति; ३-२६ से प्रयमा द्वितीय के बहुवचन में 'जस -मास' प्रत्ययों के स्थान पर ।' का आदेश सहित अन्य स्वर को दोधता प्राप्त होकर याने '' का 'खा' होकर रुकवाई रूप सिद्ध हो जाता है। जब पुलि लगत्व होता है। सब ३-४ से प्रथमा द्वितीया के बहुवचन के प्रत्यय 'जस्-शस्' को प्राप्ति और इनका लोपः ३-१२ में अन्त्य स्वर को दीर्घजा होकर सावा रुप सिद्ध हो जाता है। वेमाजल्याद्याः स्त्रियाम् ॥ ३४ ॥ इमान्ता असल्यादयश्च शब्दाः स्त्रियां वा प्रयोक्तव्याः । एस । रिमा एम गरिमा एसा महिमा एस महिमा । एसा निल्लजिनमा एम निल्लन्जिमा । एसा धुचिमा पम धुत्तिमा । अञ्जन्यादि । एसा अञ्जली एस अञ्जली । पिट्ठी पिढे । पृष्ठमित्वे कृते स्त्रियामेवेत्यन्ये ।। अच्छी अच्छि । पण्हा पण्डो । चोरिया चोरिअं । एवं कुछी । बली । निहीं । विही । रस्सी गण्ठी । इत्यञ्जन्यादयः । गहा गट्ठो इनि तु संस्कृतवदेव मिद्धम् । इमेति तन्वेग वा देशस्य डिमाइत्यस्य पृथ्वादीम्नश्चसंग्रहः । त्वादेशस्य स्त्रीत्वमेवेन्छन्त्येके ।। अर्थ:-जिन शब्दों के अंत में "इमा" है वे शम और अजली आदि शा प्राकृत में विकाय रूप से स्त्रो शिग में प्रयुक्त किये जाने चाहिये । जैसे-एसा गरिमा एस गरिमा से लगा कर एसा सिपा-एस धुत्तिया तक जानना। अंजली आदि शम भी विकरूप से स्त्री लिा में होते हैं । जैसे-एमा अमिलो एस अजली । पिट्ठी पिटु' । लेकिन कोई कोई "पृष्ठम्" के रूप पिढ' में 'इत्व ' करने पर इस शायर को स्त्रीला में ही मानते हैं । इसी प्रकार साछी से गण्ठो तक "अंजल्यावयः" के कथनानुसार विकल्प से इन वानों को स्त्रीला में जानना । गहा और गहों शगों को लिा सिद्धि संस्कृत के समान ही जान लेना । "इमा" सत्र से युक्त इमान्त शाम और "व' प्रत्यय के आवेश में प्राप्त "rमा" अन्त वाले पाग्द; यो दोनों ही प्रकार के इमान्त" श यहां पर विकल्प हा से स्त्रीला में माने गरे है। मेसे-पृथु + मा प्रथिमा मादि शब्दों को यहां पर इस सत्र को विधि अनुसार जानना । अति इई भी विकल्प से स्त्रीलिंग में जानना । किन्ही किन्हीं का मत ऐसा है कि "a" प्रत्पर के स्थान पर आवेश रूप से प्राप्त होने वाले भविमा" के इमान्त' वाले शम्ब निस्य स्त्रीलिंग में ही प्रयुक्त किये जाय ।।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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