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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [ ५७ से 'अच्छ' शब्द को पुल्लिम पक्ष की प्राप्ति ३-४ से द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में इस प्रत्यय की प्राप्ति होकर को बीता की प्राप्ति होकर अच्छी रूप सिद्ध हो जाता है। से 'इस' के स्थान नर्त्तिते संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप नयावियाई होता है। इसमें सूत्र संख्या ११२६ से 'ऋ' के स्थान पर अ४-२२५ से अन्य व्यजन 'ल' के स्थान पर 'अब यहाँ पर प्रेरक अर्थ होने पर सूत्र संख्या ३-५२ से 'आदि' प्रत्यय की प्राप्ति १ १० सं 'य' में स्थित 'अ' का लोप 'लू' का लोप ३.३० से घर में स्थान पर बहुवचन में 'जस प्रत्यय की प्राप्तिः ३ २६ से 'जस' प्रत्यय के स्थान पर 'ई' का आदेश; तथा पूर्व के स्वर 'अ' को दीर्घता प्राप्त होकर मच्चाविमाई रूप सिद्ध हो जाता हूँ । १-१७७ से द्वितीय तेरे सर्वनाम है इसका प्राकृत रूप लेग होता है इसमें सूत्र संख्या १-११ से मूल शब् 'त' के 'बृ' का लोप ३-६ से तृतीया एक वचन में 'ण' को प्राप्त ३-१४ सेस' में स्थित 'न का ए होकर तेय रूप सिद्ध हो जाता है। अस्माकम संस्कृतसर्वनाम है इसका प्राकृत रूप बम्ह होता है 1 इसमें सूत्ररूपा ३-११४ से मूल शब्द अस्मत् को षठी बहुवचन के 'आम्' प्रत्यय के साथ अम्ह आदेश होता है। य 'अहं' रूप सिद्ध हो जाता हूँ । वाक्य में स्थित 'तेण अन्ह' में 'ण' म स्थित 'त्र' के आगे 'ब' लाने से' ११० सेके होकर संधि हो आने पर गम्ह सिद्ध हो जाता है रूप अछी होता है, इसमें अक्षीणि संस्कृत शब्द है इसका २-१७' ''का '' २-८९ से प्राप्त ''का' २-९० प्राप्त पूर्वका २-२६ सोया बहुवचन में शस प्रत्यय के स्थान पर 'मि' प्रत्यय की प्राप्ति और इसी सूत्र से अत्स्य स्वर को दोता प्राप्त होकर अच्छी रूप सिद्ध हो जाता है एवा संस्कृत नाम है। इसका प्राकृत का एक होता है। इसमें सूत्र- ११ म श एतत् के अंतिम 'तू' का लोप ३-८६ से 'सि' को पति होने पर प्रथा एक वचन में 'एल' का एस रूप होता है । २-४-१८ से लौकिक सूत्र से स्त्रीलिंग का आ' प्रत्यय जोड़कर संधि करने से 'एस' रूप सिद्ध हो जाता है। अक्षिः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप होता है इस सूत्र सं २०१७ से 'क्ष' का 'छ': अच्छी २-८९ से प्राप्त 'छ' का द्विस्व 'छ' २९० से प्राप्त पूर्व 'छ' का '' १-३५ से इसका स्त्रीलिंग निर्धारण ३-१९ से एक वचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हुस्य को बीई प्राप्त होकर अच्छी रुप सिद्ध हो जाता है। चक्षुष संस्कृत वन है। इसका प्राकृत रूप '' ९८९ से प्राप्त 'व' का द्वित्व 'स्व' २-९० सेप्पू से 'क्लु' शब्द को विकल्प से पुल्लिंगता प्राप्त होने पर ३-१८ से 'सि' प्रथमा एक वचन के प्रत्यय के 'दस्य उ' को बोधे 'क' होकर चक्षू रूप सिद्ध होता है एवं पुल्लिंग नहीं होने पर याने नपुंसक लिए होते है इसमें सूत्र संख्या २०३ से '' को का १-१२ से १-२१ स्थान पर होने पर
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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