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________________ * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * वयस् संस्कृत शम्न है। इसका प्राकृत रूप वयं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-११ से 'स' का लोप; ६ -२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुंसक होने से 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-३३ से प्राप्त प्रत्यय 'म' का अनुस्वार होकर 'पर्य' रूप सिद्ध हो जाता है। सुमनस संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप सुमणं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२२८ से 'न' का 'प'; १-११ से अन्स्य 'स' का लोप; ३-२५ सें प्रथमा के एक मन में नपुंसक होने से 'म' प्रत्यय को प्राप्ति; और १.२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' का अनुस्वार होकर सुमणं रूप सिब हो जाता है। शर्मन, संस्कृत पाया है। इसका प्राकृत रूप सम्म होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' का 'स'; २ का लो; २२.से निrat'; से सम्स्य 'न' का लोप; ३-२५ से प्रममा के एक बधन में मसक होने से 'म' प्रत्यय की प्रापिता और १.२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म'का अनुस्वार होकर सम्म सप सिम हो जाता है। वर्मन् संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप चम्म होता है। इसमें सूत्र-संस्था २-७९ से 'र' का लोप; २.८९ से 'म' का विस्व 'म'; १-११ से '' का लोप; ३.२५ से प्रथमा के एक पचम में नपुसक होने से 'म प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म' का अनुस्वार होकर चम्म रूप सिद्ध हो जाता है ।। ३२॥ वाक्ष्यर्थ-वचनाद्याः ॥ १-३३ ॥ अक्षिपर्याया वचनादयश्च शब्दा: पुसि वा प्रयोक्तव्याः ॥ अक्ष्यर्थाः। प्रज्ज वि सा सवइ ते अच्छी । नच्चावियाई नेणम्ह अच्छीई ।। अजल्यादिपाठादक्षिशब्दः स्त्रीलिङ्ग पि । एसा अच्छी । चक्खू 'चक्खई । नयणा नयणाई । लोअणा लोणाई || पचनादि । अयणा वरणाई। विज्जुणा विज्जए । कुलो कुलं । छन्दो छन्। माहप्पो माहप्प। दुक्खा दुक्रवाई भाषणा भायणाई । इत्यादि । इति वचनादयः ॥ नेत्ता नेत्ताई । कमला कमलाइ इत्यादि तु संस्कृतवदेव सिद्धम् ।। वर्थ-ल के पर्यायवाचक शम और वान आदि शम्ब प्राकृत भाषा में विकल्प से पुल्लिा में प्रसक्त किये आने चाहिये । जैसे कि बाल अर्थक शम्म-अफज मिसा सवइ ते अच्छी अर्थात् रह (स्त्री) भाव भी तुम्हारी (दोनों) आंखों को भाप देती है। अथवा सौगंध देती है। यहां पर अच्छो' को पुल्लिग मानकर द्वितीया पहुवचन का प्रत्यम जोड़ा गया है । मरुधाविया तेलम्ह अच्छीई अर्थात् उसके द्वारा मेरो ऑन नचाई गई। यहां पर 'भन्छोई' लिमकर 'अाही' शब्म को नपुसक में प्रयुक्त किया गया है । अंजली गावि के पाठ से 'अति' शम स्त्रीलिंग में भी प्रयुक्त किया जा सकता है। जैसे-एसा अचमी अर्थात् यह माख । यहाँ पर बम्हो हाम्द स्त्रीलिंग में प्रमुमत किया गया है।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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