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________________ : I , * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित * [ ४७ कथम् संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप कह और कह होते है। इनमें सूत्र संपा-१-१८७ से 'घ' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और १-२९ से अनुस्वार का बैकल्पिक रूप से लोप होकर कम से दोनों रूप कह और कई सिद्ध हो जाते हैं । एवम् संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप एव और एवं होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १ २३ से 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति और १-२९ से उक्त अनुस्वार का वैकrिee रूप से लोन होकर क्रम से दोनों एव और एवं सिद्ध हो जाते हैं । नम् संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप तूण और नूर्ण होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-२२८ से द्वितीय मं के स्थान पर '' की प्राप्ति १-२३ से 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति और १-२९ से उक्त अनुस्वार का defore से लोप होकर कम से दोनों रूप नूण और नृणं सिद्ध हो जाते हैं । इदानीम् संस्कृत अध्यय रूप है। इसके प्राकृत रूप आणि ओर आणि होते हैं । इनमें सूत्र संख्या १-१७७ से '' का लोप १-२२८ से 'त्' के स्थान पर 'ण' की प्राप्तिः १-८४ से दीर्घस्वर 'ई' के स्थान पर हस्व स्वर अनुस्वार की प्राप्ति और १-२९ से उक्त अनुस्वार का वैकल्पिक रूप से इआणि सिद्ध हो जाते हैं । 'इ' की प्राप्ति १ २३ से 'म्' के स्थान पर लोप होकर कम से दोनों रूप आणि और इदानीम् संस्कृत अभ्यय रूप है। इसके शौरसेनी भाषा में बाण और बागि रूप होते हैं। इनमें सूत्र संस्पा-४--७७ से ‘इदानीम्' के स्थान पर 'दाबि' आदेश दौर १०२९ से अनुस्वार का कल्पिक रूप से लोप होकर म से दोनों रूप ण और दाणिं सिद्ध हो जाते हैं । किम, संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप कि और कि होते है। इनमें सूत्र-संस्था १-२३'' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति और १-२९ से उक्त अनुस्वार का वैकल्पिक रूप से लोप होकर क्रम से दोनों कि और किं सिद्ध हो जाते हैं । को संस्कृत क्रिया का रूप हैं। इसका प्राकृत रूप करेमि होता है। इसमें सूत्र संस्था ४ २३४ से मूल संस्कृत धातु 'कृ' में स्थित '' के स्थान पर 'र्' आवेश ४ २३९ में प्राप्त हुलन्स धातु कर' में विकरण प्रश्यय 'ए' की संधि और ३-१४१ से वर्तमान काल के तृतीय पुष के एक वक्त में 'मि' प्रत्यय को संयोजना होकर करामे रूप सिद्ध हो जाता है। संमुखम् संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप समुहं और समुह होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-२९ से 'से' पर स्थित अनुस्वार का वैकल्पिक रूप से लोपः १-१८७ से 'व' के स्थान पर हैं' को प्राप्ति और १-२३ से अन्य हुलात 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर कम से दोनों रूप समुहं और समुहं सिद्ध हो जाते हैं। किंशुकम् संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत 'इ' के स्थान पर बैकल्पिक रूप से 'ए' को प्राप्ति रूप केसु और किमुनं होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-८६ से १-२९ से 'कि' पर स्थित अनुस्वार का वैकनिक रूप से लांच;
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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