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________________ * प्राकृत व्याकरण * . इहकं संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप इह्य होता है । इस में सूत्र-संस्था २-१६४ से 'स्व-अर्थ' में संस्कृत के समान ही प्राकृत में भी 'क' प्रत्यय की प्राप्ति, ५-१७७ से प्राप्त प्रत्यय 'क' का लोप और १-१८० से लोप हए 'क' के पश्चात् दोष रहे हुए 'अ' के प्रधान पर 'य' की प्राप्ति और १-२६ से अन्य स्थर 'अ' पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर इयं सप सिद्ध हो जाता है। आरलेस्टुकम संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप आलेटुअं होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७७ से 'श' का लोप; २-३४ से 'ट् के स्थान पर'' को प्राप्ति; २-८९ - प्राप्त 'इ' को द्वित्व ६६' को प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व 'इ' के स्थान पर 'ट्' की प्राप्ति; २-१६४ से रक-अर्थ' में संस्कृत के समान ही प्राकृत में भी 'क' प्रस्पप की प्राप्ति; १-१७७ से प्राप्त प्रत्यय 'क' का लोप और १-२३ से अन्स्य हलन्त 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर आलंट? रूप सिद्ध हो जाता है ।। १-२८ ।। ङ-अ-ए-नो व्यञ्जने ॥ १-२५ ॥ ङ-अ ण न इत्येतेषां स्थाने व्यञ्जने परे अनुस्वारो भवति ।। ङ । पङक्तिः । पंती ॥ पराङ्मुखः । परंमुहो ।। । कञ्चुकः ! कंधुनो । लाञ्छनम् । लंकणं ।। ण । परमुखः । छंमुहो ॥ उत्कण्टा | उक्कंठा ॥ न । सन्ध्या । संझा ॥ विन्ध्यः । विभो ॥ अर्थ-संस्कृत शाक्बों में यवि '', 'म', 'ण', और 'न' के पश्चात् व्यन्जन रहा हा हो तो इन शम्बों के प्राकृत रूपान्तर में इन ', '' 'ण' और 'म्' के स्थान पर (पूर्व व्यञ्जन पर) अनुस्वार की प्राप्ति हो जाती है। जैसे' के उदाहरणः-पडितः = पंती भौर पराङ्मुखः = परंमुहौ । '' के उदाहरणः कम्युकः = कंसुओ और लाग्छमम् - लछणं । 'म्' के उदाहरणः-पण्मुलः छमुल्हो और उत्कयला = नक्कंठा । 'न' के उदाहरणः-सन्ध्या = संसा और विन्ध्यः विनोइत्यादि। पक्ति -संस्कृप्त रूप है । इसका प्राकृत रूप पंती होता है। इसमें नत्र संख्या-१-२५ से हलन्त ध्यजन 'ह' के स्थान पर (पूर्व-न्यजन पर) अनुस्वार की प्राप्ति; २-७७ से 'क्त' में स्थित हलन्त 'क्' का लोप और ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एक वक्षन में इकारान्त स्त्रीलिंग में संस्कृत-प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में अन्त्य हस्व स्वर को वीर्घ की प्राप्ति होकर पती रूप सिद्ध हो जाता है। परामुख-संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप परंमूहों होता है इसमें सूत्र-संख्या-१-८४ से '' में रिपत 'भा के स्थान पर 'अ' को प्राप्ति; १-२५ से हलम्त व्यञ्जन 'इ' के स्थान पर (पूर्व व्यजन पर) अनुस्वार की प्राप्ति; १-१८७ से 'स' में स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक रबन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर परंमुहो रूप सिद्ध हो जाता है। काहरु का साकृत रूप है । इसका प्राकृत रूप कंधुओ होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२५ से हलन्त जन 'ज' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति; १-१७७ से द्वितीय 'क' का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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