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________________ (२१) जारो पु. (जारः व्यभिचारी; उपपति; १.१७७ । जे अ. (पाद-पूरणार्थम्) छंद को पूत्ति अर्थ में प्रयोग जाला अ. (यदा) जिस समय में; १-२६९ । किया या अन्य ३.२३७ जाव अ. (यावत) जब तक; १-११,२७१ । वि. (ज्येष्ठतर) अपेक्षाकृत अधिक बया; निज वि (निजित) जीत लिया है; २-१६४ २-१७२। जिअइ-जिअज किया (जीवति) वह जीवित होता है; जेण सर्व. पुं० (येन) जिससे, जिसके द्वारा; १-३१ (जीवन) वह जीवित है। 1-1011 २-१८३ । जिअन्तरस वि. (जीवन्तस्य) जीवित होते हुए का ३-१८० जेत्ति, जेतिलं. जेदहं वि. (यावत् ] जितना; २.१५७ जिण-धम्मो पु. (जिन-धर्म:) तीर्थंकर द्वारा प्ररूपित धर्म; जा सई. स्त्री. (या) जो (स्वी); १-२७१ । जं सर्व. न. (यत्) जो; १-२४, ४२, २-१८४, जिगणे वि. (जीणे) पचा हुआ होने पर; पुगना होने २०६। पर; 1-0२ । जं सर्व. पु. (यम्) जिस को; ३-३३ ॥ जिगहू पु० (जिष्णुः) जीतने वाला; विजयी; विष्ण. जं. (यत्) क्योंकि कारण कि; सम्बंध-सूचक सूर्य, चन्द्र ; २-७५ । अव्यय; १-२४ । जित्ति वि. (यावत् जितना, २-१५६ । जोषी पु० (योत:) प्रकाशशील; २-२४ । जिल्भा स्त्री, (जिह्वा) जीभ. रसना; २-५७ । जोरहा स्त्री. (ज्योत्स्नावान्) चन्द्र प्रकाश २-७५। जी न. (जीवितम् ) जिन्दगी; जीवन; १.२७. | जोरहालो वि. (ज्योत्स्नावान्) चांदनी के प्रकाश सहित; २-२०४। जीश्रा स्त्री. ( ज्या ) अनुष की डोर, पृथिवी, माता, . जोवणं न. (यौवनम्) जवानी; तारुण्य; १-१५९; २-९८ णच्चा द. (माया) जान करके, २-१५ । जीव-जिबाइ अक. (जं वति) वह जीता है। t-१०१ विण्णायं वि. (विशात) भली प्रकार से जाना जिअइ-जिचाउ अफ. (जीवति), (जीवतु) हुआ; २-१९९। वह जीता है। वह जीता रहे: १-१०। जीवि न. (जीवितम्) जिन्दगी, जीवन, १-२७१ ! मो पुल (ध्वजः) वजा; पताका २.२७ । जीहा स्त्री. (जिहा) जीभ, रसना; १-१२, २-५७ । । मडिलो नि. (जटिल:) जटा वाला; तापस; १-१६४ जुई स्त्री. (युतिः) कान्ति, तेज, प्रकाश, धमक;२-२४ भत्ति ब. (अदिति) घट से ऐसा १-४२ । जुगुच्छइ सक, (जुगुप्सति) वह घृणा करता है, यह निन्दा | झसुरं दे. न. (ताम्बलम्) पान; २-१७४ । करता है; २-२१ । माणं म.पु. ( ध्यानम) ध्यान, चिन्ता, विचार, जुग्गं न. (युग्मम्) युगल, बन्द, उभय; २-६२, ७८ । उत्कण्ठा-पूर्वक स्मरण; २-२६। जुण्ण वि, । जीण) जना, पुराना; १-१०२ मिज्जइ क्रिया. (क्षीयते) वह क्षीण होता है। वह कृश जुम्म न. (युग्मम्) युगल, दोनों, उभय, २-६२ । होता है। २-३ । जुम्ह सवं. (युष्मद्) तू अथवा तुम षाचक सर्व नाम; | झीण वि. (क्षीणम्) क्षय-प्राप्त; विनष्ट, विच्छिन्न, १-२४६ । कृश; २-३ । जुरइ-अणो पु. (युवति-जन:) अचान स्त्री-पुरुषः १-४ झुणी स्त्री. (ध्वनिः) ध्वनि, आवाज; १-५२ । जूरिहिह अक. (मेष्यति) यह खेद करेगी; -२०४ जूरन्तीप, कृव. (लेदस्याः ) खेद करती हुई का; (१) २-१९३। टको पु. (टक्कः) देश-विशेष; १-१९५ । जूरणे न. (जूरणे-खेदे) दूरना करने पर लेप प्रकट । गरो पुं. (सगरः) वृक्ष-विशेष; नगर का पृक्ष; करने पर, २-१९३ । १-२०५।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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