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________________ ----------- ------... .. .. गहिरं लि. गभीमबहस गम्भीर; १-१०१। । गुम्फइ सक. (गुम्फत्ति) वह गूथता है। रह मांठता है; गहीरियं म. (गामीयम्) गहराई; गम्भीरपना; २.१०७ गाई स्त्री. (गौः गायः १.२५८ । गुव्ह वि. (दुह्यम्) गोपनीय; छिपाने योग्य२०१२४ गात्री पु. स्त्री. (गो.) गाय और बैल; १-१५८। । गुरू पु. (गुवः) गुरु पूज्य; बड़ा; १-१.९। गामिल्लिया वि. (ग्रामेयकाः) गांव के निवासी; २-१६३ गुरुल्लाचा पु. (गुरुल्लापाः) गह-को उक्तिया; १-८४।। मारवं (पौरथम्) अभिमान, गौरव, प्रभाव;-१६३।। गुलो पु. (मुह) गुम लाल शक्कर; १.२० । गाची, गावीमो स्त्री. (गाव:) गम्य, २-१७४। । गुहह सक (गोहति) मह छिपाता है; वह ढांकता है। गिट्ठी स्त्री. (गृष्टिः) एक बार भ्याई हुई गाय श्रादि । १-२३६। गुहा स्त्री. (गृहा) गुफा; कन्दरा: १.४२ । गिएठी स्त्री, (गृष्टिः) एकवार ब्याई सई परय आदि; गूढोबर न. (गूढोदरम्) पेट के आन्तरिक भाग में रहा 1-२६.१२८। गिट्टी स्त्री. (दिः) भासविस, कपटता; ११२८.। ।। गेज्म वि. (गाय) ग्रहण करने के योग्य; 1-७८ ॥ गिम्हो (चीमा) गइसी का समय, प्रीजमरतुः अपहार स. ( ति गह हा वसा है; २-२१७ गेन्दु न. (कन्दुकम्) में; १-५७, १८२। गिरा स्त्री. (गो:) वाणी, १-१६। गोत्राबरी श्री. (गोदावरी) एक नदी का नाम; २.१७४ गिलाइ सफ. (पछाप्तिः) वह म्लान. होता है। यह गोही स्त्री. (गोष्ठी:) मण्डली; समरन बय वालों को । जम्हाई लेता है; २-१०६। सधाः २.७७॥ गिलाणं न. वि. (वज्ञानम्) उदासीन बीमार; यका | गोणो स्त्री. (गो.) गाय; २-१०४ । एका २-१६। | गोरिहरं, गोरीहरं न. (गौरी-गृहम) सुन्दर स्त्री का घर गुज्म वि. (गुह्यम्) गोपनीय; छिपान योग्य; २-२६; | पीवर; १४ १२४ गोला स्त्री, (गोदा) नाम विक, २-११४। गुल्छ न. (गुच्छम् } गुच्छा; १-२६ । गोले स्त्री. (हे गोदे ! ) नाम विशेषः (देवज); गुडो पु (गुष्ठः) गुह, लाल.कर; १-२०२। गुणा पु.न. (गुणा:) गुण, पर्याय, स्वभाव, धर्म; मामि वि. (मामो) खाने वाला; २-१५। १-११, ३४। गेपहाइ सक. (यह णाति) वह बहण करता है; २-२१७ मुणाई पुन. ( मुका: ) मुण, पाय, स्वभाव, मः ! गेरह सक. (गृहाण) अण करो; लेयो; २-१९७ । घे सम्ब. कद, (गहित्या) प्रहण करके गुत्तो दि. (गुप्तः) गुप्त; प्रत्र; छिपा हुआ; २-७७ २-१४६ । गुप् अक. , . प्रकाशित होना चमकना ।। गहिनं वि. भूत कुक (गृहीतम्) ग्रहण किया हया; गोवइ समय. (गोपयति) यह प्रकाशित होता है । बह चमकता है। १-३१ ॥ गेझ वि. प्राह्मम्) पहण करने के योग्य; १-७८ गुच्चो वि. (गुप्तः) गुप्त, प्रच्छन्न; छिपा हुआ; २-७७ संगहिया वि. (संगृहीताः) संग्रह किये हुए, जुगुमाइ सक. (जमप्यते) वह बचाता है, वह इकट्ठ किये हुएः २.१९८ । छिपाता है। वह निन्दा करता है। २-२१. घट्ठा बि. (पृष्टाः) पिसे हुए; २-१७४ । गुप्फ म. (मूल्फम् } पैर को गांठ; फीली, २-१० । घट्ठी वि. (घृष्टः घिसा हुआ। १.१२६ । गुभह सक. (गुफति) वह गूंधता है; बह गांठता है; घडइ सक. (घटति) वह करता है। वह बनाता है। १-१९५ ।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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