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________________ ३२ ] ककुभ संस्कृत रूप हैं । इसका प्राकृत रूप कउहा होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से द्वितीय 'कु' का प१-२१ से अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'भू' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-३१ को वृति से प्राप्त रूप 'वह' स्त्रीलिंग अयंक 'आ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कउहा रूप सिद्ध हो जाता है । १-२१। 3 रूप से * प्राकृत व्याकरण धनुषो वा ॥ १- २२ ॥ 'धनुः शब्दस्यान्त्य व्यञ्जनस्य हो वा भवति || धणुहं । ध || अर्थ संस्कृत शब्द 'धनुष' में स्थित अन्य हलन्त व्यञ्जन '' के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में वैकल्पिक की प्राप्ति होती है। जैसे- धनुः = (धमुष = पर॥ धनुषु = ( धभुः = ) संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप वहं और धणू होते हैं। इनमें से प्रथम रूप से सूत्र संख्या १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति १-२२ से अन्य हलन्त व्यञ्जन '' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति ३-६५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'सु' प्रत्यय और १ - २३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' का अनुवार होकर प्रथम रूप धणुई सिद्ध हो जाता है । द्वितीय रूप - ( धनुष्) धणू में सूत्र संख्या १-२२८ से 'म्' के स्थान पर 'ण' को प्राप्ति; १-११ मे य लभ्स ध्यक्जन 'ष' का लोप; १-३२ से प्राप्त रूप 'षणु' को पुल्लिंगस्थ की प्राप्ति और ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में उकारान्त पुलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हृस्व स्वर 'उ' को धीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप धणू भी सिद्ध । जाता है। १-२२ ॥ मोनुस्वारः ॥ १-२३ ॥ अन्त्य मकारस्यानुस्वारो भवति । जलं फलं चन्द्रं गिरिं पेच्छ || कचिद् अनन्त्यस्यापि । वर्णम्म | वर्णभि || अर्थ:-पव के अन्त में रहे हुए हलन्त 'म्' का अनुस्वार हो जाता है । जैसे :- जलम् = जलं फलम् फलं वृक्षम और गिरिम् पश्य गिरि पेच्छ । किसी किसी पव में कभी कभी अनन्त्य-याने पद के अन्तर्भाग में रहे हुए हलन्त 'म' का भी अनुस्वार हो जाता है। जैसे :- वने = वर्णाम्मि अथवा वर्णमि । इस उदाहरण में अन्तर्भाग 'म रहे हुए हलन्त 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति प्रवजित की गई है। यों अन्यत्र भी समझ लेना चाहिये । जलम् संस्कृत द्वितीयान्त एक वचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप जल होता । इसमें सूत्र संख्या ३-५ से द्वितीया विभक्ति के एक वचन में 'म' प्रत्यय और १-२३ से 'म' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर जलं रूप सिद्ध हो जाता है। फलम् संस्कृत द्वितीयात एक वचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप फलं होता है। इसमें उपरोक्त 'जर्स' के समान ही सूत्र संख्या ३५ और १ - २३ से साथनिका की प्राप्ति होकर फलं रूप सिद्ध हो जाता है।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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