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________________ इत्राणिं अ. (हधानीम्) इस समय; १.२९, २-१३४ । । इक सर्व. (एक) एक; १-८४ । इकाबू पु. (इक्षः) ईस, ऊस; २-१७ । ईसरो पु. (ईपवरः) ईश्वर, परमात्मा १-८४; २.९२ मजालो पु. (भंगारः) जलता हुआ कोयला; जैन साधुओं | ईसाल वि. (ईर्ष्याः ) ईष्याला वेषी; २-१५९।। की भिक्षा का एक दोष; १-४७, २५४ । ईसि . (ईषत्) मल्प; थोड़ा सा; १-४६; २-१२१ इनिजो , इजिपण्णू यि. (इंगितज्ञः ) इशारे से समझने वाला; २-८३ । (उ) इंगुचं न. (इंगुदम् ) इंगद वृक्ष का फल; १-८९ । उन अ. (उत्त) विकल्प, वितर्क, विमर्श, प्रश्न सम्इट्टा स्त्री. (इष्टा) ईट; २-३४ ।' चय आदि अर्थ में; १-१७२, २-१९३, २११ इट्ठो वि. (पष्ट.) अभिलषित, प्रिय; २-३४।। उन सक. (पश्य) देल्लो, २.२११। इड्डी स्त्री. (ऋद्धिः ) वैभव, ऐश्वर्य, संपत्ति; १-११८ उइंदो पु. (उपेन्द्रः) इन्द्र का छोटा भाई; १-६। और २-४१ । खबरो पु. (उदुम्बरः) गूलर का पेड-२७० । इणं सर्व (इसम) महः २-२०४। उऊ बिलिंग, ( ऋतु: ] ऋत; दो मास का काल इति वि. (एतावस्); इतना; २-१५.६ । ___ विशेष; १-१३१, १४१, २०९ । इत्तो भ. (इसः) इससे इस कारण इस तरफ; २-१६० उहलो पु (जदुखलः) उलुखल; गूगल; १.६७१ ।। इत्थी स्त्री. (स्त्री:) महिला; २.१३० । उकाठा, अछठा स्त्री. ( उत्कंठा) उत्कण्ठा, उत्सुकता; इदो अ. (इतः) इससे; इस कारण; इस तरफ; १-२५ ३०। २-१६०। उत्तिा वि. (उत्कतित:)कटा हुआ; छिश २-३० । इध सक. (इग्धा )-(वि उपसर्ग सहित) विज्झाइ करो पु. (उत्करः) राशि; लेर; १-५८ । (विध्यति) वह छैद करता है; २-२८ । का स्त्री. ( उल्का ) से जा एक प्रकार का बंगार (सम् उपसर्ग सहित)-समिझाइ (समिष्यति) ___ सा गिरता है। २-७९,८९ ।। वह चारों ओर से चमकता है; २-२८ । उक्किट्ठ वि. (उत्कृष्टम्) उत्कृष्ट, उत्तम; १-१२८ । इंदहणू पु. न. (इन्द्रधनुः) सूर्य की किरणों से मेघों पर उमेरो पु. (उत्कर:) राशि, समूह १-५८। पड़ने वाला सप्तरंगी इश्य विशेष; १-१८७। उक्त्रयं वि. (उत्सातम्) उखाड़ा हुआ; १.६७ । इंधं न. (चिह्नम् ) निशानी; घिन; १-१७०; २-५० ! उखलं न. (उदूसलम) गूगल; २-९०। इमं सर्व (इदम्) यहा २-१८१, १९८॥ उक्खायं घि. (उतपातम्) उखाड़ा हुआ; १-६.७ । मा सर्व. स्त्री (इयम् ) यहा १-४ । अविस्व चि. ( क्षिप्तम् का हुआ; ऊंचा उडापा इर अ. (फिल) संभावना, निश्चय, हेतु, पादपूर्णा | हुआ; २-१२७ 1 संदेह आदि अर्थ में २-२८६ । उग्गमा वि. (उद्गता) निकली हुई, उत्पन्न हुई; १.१७१ इव म. (4) उपमा, सादृश्य, तुलना, उत्प्रेक्षा इन उग्गय वि. (उद्गतम्) ऊंचा गया हुआ; उत्पन्न हुआ अर्थो में; २-१८२। १-१२। इसी पु.(ऋषिः) मुनि, साधु, जानी, महात्मा, उसमर्थ वि. (उच्चस्) ऊंचा; उत्सम उस्कृष्टः १-१५४ - भविष्यत्-दर्शी; १-१२८, १४।। उच्छश्रो पु. (उत्सवः) उत्सव; २-२२। इह अ. (वह) यहां पर; इस जगह; १-९, २.१६४ | उच्छएणो वि. (उत्सन्नः) छिन, सण्डित; नष्टः १-११४ हं अ. (इह) यहाँ पर, इस जगह, १-२४ । । उच्छा पु. (उक्षा) बैल; सांड; :-१७ । इहयं अ. (दह) यहां पर; इस जगह; १.२४,२-१६४ | उच्छाहो पु. ( उत्साहः) उत्साह, दृढ़ उद्यम, सामध्य; इहरा अ. (इतरथा) अन्यथा, नहीं तो; अन्य प्रकार १-११४, २-२१, ४८ । से; २.११२। उच्छु पु. (इक्षु.) ईख; गन्ना; ५-२४७ ।
SR No.090366
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorRatanlal Sanghvi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages610
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size17 MB
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